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दीपकनीलपदम्

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लेकिन वन में भी चैन नहीं,  विपदायें नित नई-नई, असुर प्रताड़ित करने वाले भी, पहुंचाये बैकुण्ठ धाम में । देखें क्या है राम में,  चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में ।

देश समाज हित ठान लिया था,  वन जाना भी मान लिया था,  वो ईश्वर हैं, उन्हें पता था,  वन जायेंगे किस काम में । देखें क्या है राम में,  चलें अयोध्या धाम में,  तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम म

सकल जमातें जुटी हुईं थीं,  धनुष खींचने लगी हुई थी,  गुरु-आशीषों के संकेतों में  खींच के तोड़ा राम ने । देखें क्या है राम में,  चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में । 

बचपन में ही मारे खर दूषण, कर उत्पातों का दूर प्रदूषण, विध्न हटाये सारे जो थे यज्ञादि पुण्य के काम में । देखें क्या है राम में,  चलें अयोध्या धाम में,  तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में

कठिन तपों से करी पढ़ाई, असुरों के संग लड़ी लड़ाई, बचपन बीता संघर्षों में रह पाए न निज धाम में । देखें क्या है राम में,  चलें अयोध्या धाम में,  तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में । (c)@दी

राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र हैं, पुरुषों में जो सर्वश्रेष्ठ हैं, राम-राज्य पर्याय बन गया अच्छे सुशाषित काम में । देखें क्या है राम में,  चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं क

कौन राम जो वन को गए थे, छोटे भईया लखन संग थे, पत्नी सीता मैया भी पीछे, रहती क्यों इस काम में । देखें क्या है राम में,  चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से, सभी जुटे हैं काम में । (c)@दीप

देखें क्या है राम में, चलें अयोध्या धाम में, तैयारी हैं जोर-शोर से सभी जुटे हैं काम में ।  (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"                  

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ऐसा भी नहीं कि इस बीमारी का, कहीं कोई इलाज नहीं,  तय कीजिये चाहिए क्या, या तो दर्द नहीं या शायरी नहीं  ।              (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"                

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शीतलहर में ओढ़ लो,  कान ढांक कर लिहाफ़, मारो चाय की चुस्कियाँ, और पढ़ते रहो किताब। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्" 

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लकड़ी जल कोयला बनी,  कोयला बन गया राख़ , अब तो आलू निकाल ले, हो  गए  होंगे  ख़ाक  । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

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शीतलहर  है चल रही, रखियो कोयला पास,  जैसी जितनी ठण्ड हो,  उतना लीजो ताप ।  (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"                 

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सपना  ऐसा देखिये , नींद नहीं फिर आए ,  सपना हो  साकार जब, चैन तभी मिल पाए । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"                

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जीत के पीछे हार है,  हार के पीछे जीत,  रात गए दिन होत है, यही पृकृति की रीत ।              (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"                  

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तकनीकी में अब रखो, हिंदी का उपयोग,  जिसको हिंदी आएगी, वो ही पायेगा भोग ।              (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"                

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ओ ग़रीब क्या  देखी नहीं, तूने अपनी औकात,  किससे पूछकर देखता, आगे बढ़ने के ख़्वाब ।              (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"                 

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उँगली पकड़ कर चल रहा था जो कल  तक,  मैं आज तक   उस बच्चे सा ख़्वाब ढूँढ़ता हूँ ।              (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"             

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कुछ सवाल हैं पेचीदा, जिनके जबाब ढूँढ़ता हूँ, अजी आप रहने दो, मैं अपने आप ढूँढता हूँ । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"

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कल मोहब्बत की,  और  आज ख़तम हुई,  अच्छा है आग, जितनी जल्दी दफ़न हुई ।              (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"       

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साँसें भरी हों आस में, तो सब कुछ होगा पास में,  जब सब कुछ होगा पास में,  तब भी होगा आस में ।   (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"                                     

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