जब से रिटायर्ड हुआ हूँ,
अकेलेपन से रूबरू हुआ हूँ ।
परिचितों से अब दुआ सलाम कम होती है।
पर यादें अक्सर बिना बताए घेर लेती है।
दिखते हैं माँ पापा, दादी दादा के हँसते चेहरे,
फिर हो जाते हैं उदास और धुंधले चेहरे।
कुछ और चेहरे भी आते हैं,
बड़ी-बड़ी रोबेली मूछें और
घूरती आँखों से सहमा जाते हैं ।
शायद मेरे परदादा या उनके दादा होंगे ।
पर मुझसे नाराज क्यों है ?
फिर एक दिन यादों में देहरी आयी,
बोली सुंदर घर बनवा लिया है,
पर मुझे बिसार दिया है।
इसकी तो खूब देखभाल करते हो
पर वह जो पुरखों की देहरी है,
उसे भुलाएँ बैठे हो ।
वह देहरी जिसे तुम्हारी दादी परदादी
अपने हाथों से लीपती थी ।
वह देहरी जहाँ तुम्हारी माँ
रोज साँझ का दिया लेसती थी ।
वह देहरी जिसके बाहर
तुलसी का चौबारा था ।
जहाँ तुमने अपना बचपन
हँस खेल गुजारा था ।
वह देहरी जिसके दरवाजों पर तुम्हारी
जीवनसंगिनी की हथेली की थाप है ।
वह देहरी जहाँ आज भी
उसके ऑलते की छाप है ।
अंदर कमरे में जालों के साथ टंगी हैं
तुम्हारे पूर्वजों की फोटो ।
जिन की माला, दिया तो क्या
धूल पोंछे भी हो गए हैं बरसों।
शनील के कपड़े पर सोने के तार से बना
वंश वृक्ष दीमक खा रहीं हैं ।
तुम्हें हमारी याद भले ही ना आती हो,
हमें तो तुम्हारी याद आ रही है ।
वहीं किसी अंधेरे कमरे के कोने में गड़ी है,
तुम्हारी और तुम्हारे बच्चों की नाल।
जिसे तुम्हारी माँ मांग लाई थी नर्स से
देकर कुछ नेग न्योछावर ।
यह सोच कर नाल घर में दबाई थी
कि नाल के साथ बच्चे भी जमीन से
घर से जुड़े रहेंगें । पर आज
पैसों का बंधन इतना मजबूत हो गया है
कि नाल गड़ी है, फिर भी तुम लोगों का
घरों से नाता टूट गया है ।
एक बात बताती हूँ ध्यान से सुनों
घर की औरतें नाल के साथ गाड़ देती थी
थोड़ी खुशियाँ और सुकून।
इसलिए चाहे जितने भी बाहर घूम आओ
पैसे कमाओ,
खुशियों औ सुकून के लिए
घर की देहरी पर ही आना पड़ता था।
आज नाल नहीं गाड़ी जाती है घरों में,
बहा दी जाती है नाली में ।
साथ ही बह जाती है खुशियाँ और सुकून
ढूंढते रहो नहीं मिलती है कभी भी ।
इसलिए सुकून ढूँढ रहें हो तो
घर की देहरी पर एक बार आ जाना ।
पुरखों की फोटो की धूल हटा जाना।
तेरे बच्चों को उनके पुरखों से मिलवा कर
एक बार उनको भी देहरी का स्पर्श करा के,
दो घड़ी देहरी पर बैठ कर सुस्ता कर
वो खुशियाँ और सुकून ले जाना जो
तुम्हारी माँ ने, दादी ने थमाया था मुझे
तुम्हारी, तुम्हारें बच्चों की अमानत के रूप में I
मैंलिक एवं स्वरचित
✍️अरुणिमा दिनेश ठाकुर ©️