मैं कौन हूँ ?
मैं एक पुरुष हूँ ,
एक कमाने की मशीन
बस और कुछ नहीं
हमारी संवेदनाएँ, भावनाएँ शौक
कुछ मायने नहीं रखते ।
हमारे शौक को वह लत कहते हैं,
दोस्तों को बुरी संगति ।
वह कौन ? अरे वही जिसको हम
बड़े चाव से ब्याह कर लाए थे ।
पहले हम बेटे थे, दोस्त थे,
भाई थे, सब थे, पर पति नहीं थे ।
अब पति हैं, और कुछ नहीं है ।
माँ हो या बहन दोस्त या भाई
सब का यही कहना है भाई तू
शादी के बाद से बदल गया है।
अब तू हमें इतना समय नहीं देता है ।
तूने तो जैसे हमसे मुँह फेर लिया है।
वही पत्नी का कहना है,
आपको हमारी पड़ी ही नहीं है,
हम तो बस आपके घर की नौकरानी हैं।
जब देखिए दोस्तों के साथ या
परिवार के साथ ही समय बिताते हैं।
जबकि सबको मालूम है
जिंदगी सिर्फ कमाने में बीत रही है ।
उनका ब्यूटी पार्लर, किटी पार्टी
यह सब जरूरतें हैं ।
हमारा एक आध कश और पैग
आवारागर्दी, फिजूलखर्ची ।
समझ नहीं आता जिंदगी जी रहा हूँ
या काट रहा हूँ।
प्यार के नाम पर ऐसा शिकंजा कसा है
कि ना जीते बनता है ना मरते ।
जो यह दुहाई देते हो ना कि
तुम्हारे कारण सब कुछ छोड़ कर आए हैं ।
उनको कोई यह बताए कि
छूट तो हमारा भी गया है ।
दोस्तों के साथ शामें बिताना,
भाई बहन के साथ वह
बिना वजह कहकहे लगाना।
माँ से सिर पर चंपी करवाना।
पापा के साथ वो ताश और
शतरंज की बाजी लगाना ।
पर पुरुष हूँ, शिकायतें करूँ भी
तो किससे ? गुनहगार हूँ ,
आखिर ब्याह कर तो मैं ही लाया हूँ।
मौलिक एंव स्वरचित
अरुणिमा दिनेश ठाकुर ✍️.
पढ़ने के लिए आप सभी का आभार