कौन कहता है ?
खुशियाँ बाँटने से बढ़ती हैं ..
और गम बाँटने से कम होते हैं।
खुशियाँ तो पुष्प होती हैं ,
आती हैं,
महकती हैं , महकाती है ,
अंजुलि भर जाती हैं।
फिर पुष्प झड़ जाते हैं ,
महक उड़ जाती है ।
कभी कभी आपके साथ चलने वालों को महक पसंद नहीं आती है ।
गम क्या है ?
पता नहीं शायद एक बोझ है ।
पर हर कोई अपनी पीठ पर
एक बोझ ढो रहा है ।
तो किसको फुर्सत है
एक दूसरे का गम बाँटे।
जीवन पथ पर थोड़ी देर बैठे, सुस्ताए।
अपनी गठरी खोलें दूसरों की खुलवाए ।
सब के एक से अपने गम है ।
एक सी परेशानियां
कौन किससे बाँटे ?
कौन किससे बँटवायें ?
पर कोई एक बात बताएं
हम जीवन पथ पर खुशियों को
साथ लेकर नहीं चलते हैं ।
सिर्फ उनकी महक को
यादों में बसायें रहते हैं ।
फिर गम की गठरी को क्यों ढोते हैं ?
ऐसा क्यों नहीं करते करते ?
जब भी गम मिले उससे
उसी जगह स्वीकार कर
उसी जगह छोड़ दे।
हल्के तन मन से जीवन पथ पर आगे बढ़ें ।
उसने धरती पर खाली हाथ भेजा था ।
मौलिक एवं स्वरचित
अरुणिमा दिनेश ठाकुर