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पापा जैसी मैं..

8 दिसम्बर 2021

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आजकल अक्सर कुर्सी पर बैठकर

पाँव हिलाते हुए मुस्कुराने लगी हूँ ।

लगता है पापा की तरह सब

गम, परेशानियाँ छुपाने लगी हूँ।

बच्चों के साथ खेलने की जगह अब,

उनके सर पर हाथ फेर कर

अलग थलग बैठ जाने लगी हूँ ।

लगता है पापा जैसी होने लगी हूँ ।

बड़े होते बेटे को अंक में

भरने से बचने लगी हूँ।

आज पापा से मेरा वह गले मिलना

और पापा का सिमटना समझने लगी हूँ।

बच्चों की खुशियों में अपनी

खुशियाँ तलाशने लगी हूँ

उनके भविष्य की चिन्ता में

अपने वर्तमान को भुलाने लगी हूँ

लगता हैं पापा जैसी होने लगी हूँ। 

कहती नहीं हूँ कुछ अधूरी ख्वाहिशें

मन में ही दफन कर लेती हूँ।

बच्चों की शॉपिंग लिस्ट के आगे

अपनी लिस्ट को फॉड़ कर फेंक देती हूँ ।

त्योहारों में अब वह बात नहीं कहकर

सिर्फ बच्चों के लिए त्योहार मनाती हूँ ।

खर्चों में कटौती करके

पापा की तरह पैसे बचाने लगी हूँ।

लगता है पापा जैसी होने लगी हूँ।

देखा हैं पुरानी फोटों में

पापा को ब्रांडेड कपड़े जूते पहने,

दोस्तों के साथ कहकहें लगाते हुए।

बाद में पूरी जिन्दगी सिर्फ चार

पैन्ट शर्ट में बिताते हुएँ।

दोस्तों की जगह सिर्फ माँ और परिवार

के साथ समय बिताते हुएँ।

आज कल मैं भी अपनी सखियों

सहेलियों से कटने लगी हूँ।

लगता हैं पापा जैसी होने लगी हूँ। 

( २)

मेरे रंग ढ़ंग देखकर

पति देव को खयाल आया ।

उन्होंने मुझे समझाया,

अब ज़माना बदल रहा है।

पापा अब सैक्रिफाइस (त्याग) नहीं करते हैं ।

बच्चों को बड़ों की खुशियों की

अहमियत समझाते हैं ।

बच्चों के लिए जीना अच्छी बात है,

पर बच्चों को भी मां-बाप

के लिए जीना सिखाते हैं ।

कब तक पापा अपनी खुशियों

को अल्गनी पर टाँगते रहेंगे ?

बच्चों की परवरिश में खुद के

वर्तमान को डूबोते रहेंगे ?

फिर वह अपनी जिंदगी कब जिएंगे ?

इसीलिए आज के पापा स्मार्ट पापा है ।

वह खुद भी जीते हैं और बच्चों

के लिए भी राह आसान बनाते हैं ।

जिंदगी एक ही है उसे खुल कर जिओ

बच्चों को भी यही मंत्र सिखाते हैं।



मौलिक एवं स्वरचित 

✍️ अरुणिमा दिनेश ठाकुर ©️


Jyoti

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👍👌

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