मेरा किशोर वय बेटा आँखों में
शैतानी भर कर मुझसे पूछ बैठा
"पापा चाँद तो पृथ्वी का चक्कर लगाता है
फिर मामा क्यों कहलाता है ?
क्या कोई भाई अपनी
बहन के चक्कर लगाता है" ?
प्रश्न तो सही था पर
उत्तर मेरे पास नहीं था ।
तभी मेरे दिमाग में एक विचार आया
और मैंने उसे समझाया
"बेटा जब तुम छोटे थे तो
माँ का पल्लू पकड़ कर घूमते थे
वैसे ही वह भी घूम रहा है
मान लो धरती माँ, चाँद बेटा है"।
बेटा बोला, "पापा अगर चाँद बेटा है
तो उसे भैया या चाचा क्यों नहीं कहते" ?
तभी मेरी श्रीमती जी वहाँ आई
हम दोनों का वार्तालाप सुन कर मुस्कुराई।
मानो कह रही हो तुम मूर्ख अज्ञानी
तुम्हारे बस की बात नहीं ।
तुम जवाब दे ना पाओगे
किशोर मन को बहला ना पाओंगे
श्रीमती जी ने बेटे को पास बुलाया
पुचकारा दुलराया ।
वह बोली, "बेटा तेरा सवाल
बिल्कुल सही है।
चंदा मामा है पर इसमें धरती और
चाँद की रिश्तेदारी नहीं है ।
कुछ हजार साल पीछे जाओ
जब संदेश भेजने के साधन नहीं थे I
गरीब घर की बेटियाँ तो संदेशों
के लिए भी तरस जाती थी
गर कोई भूला भटका
उनके गाँव से आया तो ही
मायके का हाल सुन पाती थी,
अपना संदेश कह पाती थी।
मोबाइल फोन तो क्या चिठ्ठी पत्री
का भी ठिकाना ना था।
अमीर घर की बेटियों का संदेश भी
हरकारा महीनों में पहुँचाता था।
शादी के बाद बेटियाँ सिर्फ
ससुराल की हो कर ही रह जाती थी
कोई कोई तो वापस कभी मायके
भी नहीं आ पाती थी।
शादी बचपन में हो जाती थी तो
उनके पास कोई याद ही नहीं होती थी
घर, सखियाँ, माँ, बाबा या भैया के चेहरे
सब धुंधले दिखते थे
मायके की यादों में नाम पर
सिर्फ चाँद चमकता था
वह चाँद जो उन्होंने माँ की
गोद में बैठकर देखा था ।
वह चाँद जिसने दादी की कहानियाँ
साथ-साथ सुनी थी ।
वह चाँद जिसने भाई बहन के साथ
छाही घामा खेला था ।
ससुराल में सारे अनजान लोगों के बीच
वह चाँद को ही परिचित पाती थी ।
तो बस चाँद से सबसे प्यारा रिश्ता
भाई का जोड़ देती थी I
बस इसी तरह चाँद हर
विवाहित लड़की का भाई हो गया
सारे जग का प्यारा दुलारा
हमारा चंदा मामा हो गया"।
पढ़ने के लिए आभार
मौलिक एव स्वरचित
✍️ अरुणिमा दिनेश ठाकुर ©️