उम्र के इस पड़ाव,
जीवन के इस मोड़ पर आकर
जीवन का गणित उलझ सा गया है I
परेशानी क्या है ?.
सीधा सा जोड़ घटाव ही तो है ।
पर फिर भी समझ नहीं आ रहा है I
जिस दिन से शादी हुई है ,
आपने सिर्फ ऐड ( जोड़ ) ही किया I
मुझे अपनी जिंदगी में,
अपने परिवार में,
अपनी खुशियों में, अपने सपनों में I
अपने फैसलों में, अपने हौसलों में ।
अपनी जिम्मेदारियों में,
यहां तक कि अपने बैंक में,
अपनी जायदाद में,
आपने तो अपने नाम तक को भी
मेरे साथ साझा किया।
और मेरे हिस्से में सिर्फ घटाव आया I
दुनिया मुझे दुनियादारी सिखाने लगी l
सरकार मुझे नियम समझाने लगी।
आपके जाने के बाद मानो,
सब हाथ धोकर पीछे पड़ गयें I
आंसू तो कभी सूखे नहीं ,
पर हजारों काम गले पड गयें।
वाहन अपने नाम पर करवा लो,
बैंक अकाउंट में अपना नाम डलवा लो,
प्रॉपर्टीज जायदाद के पेपर संभाल कर रखो,
सब कुछ अपने नाम करवा लो ।
यहां तक कि बेटे के रिपोर्ट कार्ड
पर भी हस्ताक्षर मैंने किए I
हे भगवान यह घटाव
मेरे हिस्से में ही क्यों ?
मुझे क्यों ? क्यों ? क्यों ?
हर जगह से आपको हटाना पड़ रहा है l
हर जगह मेरा नाम डलवाना पड़ रहा हैं।
पता नहीं क्यों पर मुझे लगता हैं
अक्सर आप मुझसे सवाल करते हों ..
डार्लिंग मैंने तो तुम्हें हर क्षण
अपनी जिन्दगी से जोड़ा. . .
और आज जब तुम्हारी बारी हैं,
तो क्यों मेरा नाम हर जगह से हटा रहीं हों ?
किश्तों में ही सहीं क्या अपने जीवन से
अपनी यादों से भी मिटा रहीं हों ?
पति के जाने के बाद महिलाओं को इस पीड़ा से गुजरना पड़ता हैं। मैंने अपनी कविता का माध्यम से उनकी पीड़ा को आपके समक्ष पहुँचाने का प्रयास किया हैं।
मौलिक एंव स्वरचित
अरूणिमा दिनेश ठाकुर
पढ़ने के लिए आपका आभार