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साथ देना जिंदगी

12 दिसम्बर 2021

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जब भी मैं मायूसी के अंधेरों में

डूब जाती हूँ।

क्या करना है ? किधर जाना है ?

कुछ समझ नहीं पाती हूँ।

तब अक्सर मुझे सूरज, चंद्रमा,

नीला आकाश देते हैं हौसला,

दिखाते हैं सपना। 

कहते हैं खोल दो पंख उड़ आओ,

उड़ो और ऊँचे उड़ों और हमें छू लो ।

शह पाकर उनकी और मन की

उम्मीद का पंछी

धीरे से सपनों के पर फैलाता है ।

खुद को ऊँचा उड़ने के लिए

तैयार कर लेता  ।

पर आकाश में बंधा जाल

रिश्तों का, जिम्मेदारियों का,
अपेक्षाओं का

कभी नहीं दिखता ।

उलझ कर जिसमें सब सपने टूट जाते हैं।

मन का पंछी गिर कर जमीन पर

तड़पता और सोचता, 

जिंदगी तब दूर थी ना अब पास है ।

टूट चुके सपने, पर ऊँनीदी आँखों

में जीने की आस है ।

अभी थोड़ी सा कोशिश कर लूँ

तो शायद मैं उड़ पाऊँगीं। 

चुपके से ही सही जिंदगी से

टकरा जाऊँगी।

हाथ थामे है तू मेरा फिर भी

मैं कितनी अकेली

हो गई नाउम्मीद तुझसे

खुद ही बन बैठी पहेली।

जिंदगी के साज़ पर अब

गीत गा ना पाऊँगी ।

मुक्त कर दो बंधनों से

साथ चल ना पाऊँगी ।

तुम प्रतिष्ठित मैं अकिंचन

यह भला क्या मेल है ?

तू है दाता मैं भिखारी

साथ यह बेमेल है ।

तू पथिक चलना तुझे हैं,

दौड़ते अब थक गई मैं ।

पास आकर हाथ थामो

साथ जो देना तुम्हें है ।

धूप है काफी यहाँ

पर छाँव की दरकार है ।

हॉं मगर सच है यही कि

ऐ जिंदगी सिर्फ तुझसे प्यार है। 






मौलिक एंव स्वरचित

✍️ अरुणिमा दिनेश ठाकुर ©️






Jyoti

Jyoti

👌

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