नई दिल्लीः समय का पहिया कितना क्रूर होता है। यह भाजपा के पितामह कहे जाने वाला लालकृष्ण आडवाणी से बेहतर कौन समझ सकता है। कभी जिस आडवाणी से मिलने के लिए भाजपा के बड़े-बडे नेताओं को महीनों तक अप्वाइंटमेट नहीं मिल पाता था। आज वही आडवाणी संसद भवन परिसर में अलग-थलग पड़े दिखे। आज मोदी कैबिनेट में जो तामाम मंत्री हैं, इसमें से तमाम आडवाणी की कृपा से ही टिकट पाकर पहचान बनाने में सफल रहे। मगर आज वही आडवाणी राजनीति क रूप से जब हाशिए पर चले गए तो अपने ही भूल गए। हमेशा बड़े नेताओं घिरे रहने वाले आडवाणी जब राष्ट्रपति चुनाव में वोट डालने पहुंचे तो उन्हें एक ऐसे सच से सामना करना पड़ा, जो सच्चाई बड़ी क्रूर होती है। वे संसद भवन परिसर में अकेले टहलते मिले। यहां तक कि पार्टी का एक अदना सा सांसद भी उनके आसपास नहीं दिखा।
इंडिया टीवी के विशेष संवाददाता मनीष कुमार झा ने इस वाकये को फेसबुक पोस्ट पर बयां किया है। पेश है मनीष की ओर से बयां दास्तान।
आज पहली बार आडवाणी जी को अपनी गाड़ी के लिए संसद परिसर में भटकते हुए देखा। अमूमन वो गेट नंबर 6 से अपने सुरक्षा के तामझाम के साथ आते-जाते है। लेकिन आज पता नही क्या और कैसे हुआ !
मैं पार्लियामेंट की लाइब्रेरी बिल्डिंग से वेंकैया नायडू की प्रेस कॉन्फ्रेंस से निकल रहा था । उपराष्ट्रपति पद के लिए नामांकन दाखिल करने के बाद वेंकैया नायडू मीडिया वालों से मिलने आये थे। मेरी नजर संसद के गेट नंबर 4 पर पड़ी।
आडवाणी जी को कई रिपोर्टर और कैमरामैन घेरे हुए थे। तेज धूप थी और वो अपनी गाड़ी ढूंढ रहे थे। देरी होता देख मीडिया वालों ने उन्हें गेट नंबर 4 के सामने बने मीडिया वाली जगह पर आने का न्योता दिया। वो अंदर आकर बेंच पर बैठ गए। थोड़ी देर बाद वहां से उठे और पैदल ही गेट नंबर 1 की और चल पड़े। भीषण गर्मी में वो लगभग 100-150 मीटर चलकर गेट नंबर 1 पर आकर खड़े हो गए।
आंखे अपनी गाड़ी के इंतजार में सामने देखती रहीं। आखिरकार उनके जाने की व्यवस्था हो गयी।
।।। "मैं समय हूँ " ।।।