नई दिल्ली : गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर अपने क्षेत्रों में सराहनीय कार्य के लिए 89 हस्तियों को पद्म सम्मान से नवाज गया। इस सूची में एक नाम उत्तराखंड की लोग गायिका बसन्ती देवी का भी है। बसंती देवी को पद्म श्री मिलने पर पूरा उत्तराखण्ड गर्व महसूस कर रहा है। वैसे तो संगीत प्रेमियों के लिए बसंती देवी का नाम नया नही है। बसन्ती देवी पिछले 40 सालों से उत्तराखडं के जागर गीतों को देश और विदेश के कई मंचों पर गया चुकी हैं।
बसन्ती बिष्ट के जागर जब आकाशवाणी से गूंजने लगे तो पुरुषों ने इसका विरोध कर दिया। बसन्ती बिष्ट बताती है कि आकाशवाणी में तो इसका विरोध नहीं हुआ, लेकिन जब उन्होंने मंचों से जागर गाना शुरू किया तो इसका कुछ लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया। जागर उत्तराखंड में शास्त्रीय संगीत के रूप में जाना जाता है, जो अब धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है। पहाड में जागर गाने और इसकी जानकारी रखने वाले बहुत कम लोग रह गये है।
बसंती देवी इस साल ‘पद्म सम्मान’ से नवाजी जानी वाली उत्तराखंड की वह इकलौती लोक कलाकार ही नहीं, इकलौती शख्सियत भी हैं। बसंती देवी ही हैं जिनके कारण आज उत्तराखंड का पारंपरिक लोग गायन जागर आज भी ज़िंदा है। जागर उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में देवताओं का स्तुति गान जागर के रूप में किया जाता है। जागरों में वेद, पुराण, शास्त्र, नागों और पहाड़ की लोक परम्पराओं का बखान है। धार्मिक अनुष्ठानों में जागर गाकर ही पूजा की जाती है।
पहले पहाड़ों में केवल पुरुष ही जागर गाया करते थे लेकिन बसंती बिष्ट ने न केवल इस परम्परा को तोड़ा, बल्कि इस पहाड़ी सभ्यता को नई ऊंचाइयों तक भी पहुंचाया। उत्तराखण्ड आंदोलन में बसंती देवी ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। अपने जागर गीतों से बसंती देवी ने उत्तराखडं आंदोलनकारियों में खूंजां फूंकी। बसंती बिष्ट ने पहाड़ों की संस्कृति और सभ्यता को विदेशों में भी प्रचलित किया। जब भी बसंती पारंपरिक वेशभूषा में मंच पर आती हैं और जागर गाती हैं।
बसंती पारम्परिक जागर और लोकगीतों से जुड़ाव इनकी माँ बिरमा देवी से विराशत में मिला और उनसे ही इन्होने इसे सीखा इन्हें परम्परागत ढोलकी, ड़ोर-थाली, ढ़ोल दमाऊं, हुड़का जैसे सभी बाध्य यंत्रो को ज्ञान तो है अपितु इन्होने अपने जागरो के माध्यम से मांगल, पंडवानी, और नंदा के जगारो को आज की पीढ़ी के लिए संजो के रखा है। सचल हिमालयी महाकुम्भ श्री नंदा राजजात यात्रा का कोई लिखित इतिहास नहीं है जो कुछ भी हम जानते है वो यहाँ के लोकगीतों और नंदा के जागरो के द्वारा ही जान पाए है और बसंती बिस्ट ने माँ नंदा के इन जागरो को बरसो से अपने जागरो के माध्यम से संजो कर रखा है।