प्रिय पाठकों वीर अभिमन्यु वध एक चम्पू काव्य है। जिसमें गद्य और पद्य दोनों तरह से लिखा गया है। आप इसे एक बार जरूर पढें। और अपनी टिप्पणी जरूर करें। जिससे हमें यह पता चल सके। आप ने मेरी किताब वीर अभिमन्यु वध को कितना पसंद किया। धन्यवाद 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
पितृ दोष ऐसा दोष जो आप के जीवन में काम नहीं बनने देता ! शादी, धन समस्या ,अशांति रहती हैं . होता सब को हैं थोड़ा थोड़ा लेकिन किसी किसी को अधिक होता हैं ! किसी किसी की कुंडली में भी पितृ दोष होता हैं ! तो क्या हैं यह और क्यों हमारे जीवन पर प्रभाव डालता
यह किताब गीता दर्शन पर आधारित है। आज के युग में गीता दर्शन की प्रासंगिकता एक ऐसा विषय है जो हमें सोचने पर मजबूर करता है की गीता केबल महाभारत के युद्ध क्षेत्र का वर्णन नहीं है, अर्जुन और कृष्ण के मध्य संवाद नहीं है बल्कि युद्ध क्षेत्र में अर्जुन के मन
ऐतिहासिक जगत् के प्रारम्भ से लेकर वर्तमान काल तक मानव-समाज में अनेक अलौकिक घटनाओं के उल्लेख देखने को मिलते है! आज भी, जी समाज आधुनिक विज्ञान के भरपूर आलोक में रह रहे है, उनमें भी ऐसी घटनाओं की गवाही देनेवाले लोगो की कमी नहीं।
त्रेतायुग में पृथ्वी का भार उतारने के लिए अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ जी के यहाँ श्रीहरि नारायण ने चार रूपों में अवतार लिया ! शेषावतार श्री लक्ष्मण जी जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त श्री राम जी की छाया बनकर रहे ! लक्ष्मण जी का जीवन चरित्र बहु
गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं कि जो भी मनुष्य भगवद गीता की अठारह बातों को अपनाकर अपने जीवन में उतारता है वह सभी दुखों से, वासनाओं से, क्रोध से, ईर्ष्या से, लोभ से, मोह से, लालच आदि के बंधनों से मुक्त हो जाता है। आगे जानते हैं भगवद
भारत देश को एक बहुत प्राचीन इतिहास है| जितना प्राचीन है, उतना ही आधुनिक भी है| कई सालों से भारतीय ऋषी, योगी अपने ऐतिहासिक अध्यात्म और योग को मनुष्य जाती तक पहुचाने का कार्य करते आ रहे है।
भक्तियोग का एक बड़ा लाभ यह है कि वह हमारे चरम लक्ष्य (ईश्वर) की प्राप्ति का सब से सरल और स्वाभाविक मार्ग है। पर साथ ही उससे एक विशेष भय की आशंका यह है कि वह अपनी निम्न या गौणी अवस्था में मनुष्य को बहुधा भयानक मतान्ध और कट्टर बना देता है।
विचारों का सैलाब जो मन में गुमर गुमर कर न जाने कितने कितने आवेश ले आते हैं उन्हीं पर मंथन
तू वही है वही है नहीं है जिसकी चाहत थी सदियों से हर कौम की तू वही है, वही है,वही है वही... तू ही रूहों का मालिक पिता और गुरु, पूरा होता तुमसे सफर ये, खत्म और शुरू, परवरिश दे रही तेरी मौजूदगी तू वही है वही है वही है वही.... तेरा आगाज, अंजाम, इंसाफ
पौराणिक व्यवस्थाओ को समझे। आज हम यहा कलावा यानि मौली जो हर पूजन अर्चन पर कलाई पर बांधते है ।के बारे मे थोडी जानकारी सांझा करने जा रहा हू। स्वीकार करे अन्यथा न ले। जय श्रीकृष्ण।
सावन का महत्व जीवन में मानवता के साथ साथ प्रकृति और पर्यावरण का सहयोग है और हम सभी महाकाल को सावन में महत्व को समझें।
प्रत्येक भाषा के लिये स्थायी साहित्य की आव-श्यकता होती है। जो विचार व्यापक और उदात्त होते हैं, जिन का सम्बन्ध मानवीय महत्त्व अथवा सदा-चार से होता है, जो चरित्रगठन और उल की चरितार्थता के सम्बल होते हैं, जिन भावों का परम्परागत सम्बन्ध किसी जाति की सभ्य
ओशो द्वारा कृष्ण के बहु-आयामी व्यक्तित्व पर दी गई 21 र्वात्ताओं एवं नव-संन्यास पर दिए गए एक विशेष प्रवचन का अप्रतिम संकलन। यही वह प्रवचनमाला है जिसके दौरान ओशो के साक्षित्व में संन्यास ने नए शिखरों को छूने के लिए उत्प्रेरणा ली और “नव संन्यास अंतर्राष
निरंतर अन्तर्मुखी एवं बहुर्मुखी विकास में संतुलन बनाये रखना चाहिए मनुष्य एक विकासशील प्राणी है , इस धरती पर जन्म लेने के बाद वह निरंतर विकास करता चला जाता है क्योंकि मनुष्य का जीवन भी विकास की यात्रा है | मनुष्य का विकास दो प्रकार का होता है अंतर्म
इस पुस्तक में माँ के नो रूपों के बारें में बताया गया हैं और उनका कौन सा रूप कौन से अंग में बस्ता हैं वह बताया गया हैं ! पूजा के साथ हम और क्या कर के खुद को हील कर सकतें हैं ! नवरात्री एक ऐसा समय हैं जब हर तरफ भक्ति होती हैं बहुत ड्रिंक करने वाले
यह किताब हमें जीवन मूल्यों का असीम ज्ञान प्रदान करता है। मुश्किलों का निष्कर्ष भी देता है।हमारे जीवन प्रश्नों का जवाब भी इसमे मिलता है।यह धर्म और अध्यात्म के बारे मै भी बताता है।यह किताब किसी का भी जीवनशैली को बदलने और बेहतर बनाने मे कारगार है। #एक
एक व्यक्ति का व्यक्तित्व उस व्यक्ति की सोच पर हीं निर्भर करता है। लेकिन केवल अच्छा विचार का होना हीं काफी नहीं है। अगर मानव कर्म न करे और केवल अच्छा सोचता हीं रह जाए तो क्या फायदा। बिना कर्म के मात्र अच्छे विचार रखने का क्या औचित्य? प्रमाद और आलस्य ए
स्त्री ,पुरुष, बच्चे को सर्पदंश या सांप के काटने पर (बाबा) तेजाजी महाराज के नाम की उतरी(दागां) बांधा जाता है। जिससे जहर का असर नहीं होता। और 12 माह में एक बार मेला लगने पर बाबा के यहां मंदिर या चबूतरे पर उतरी( तातं) काट दी जाती।
प्रियप्रवास अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध" की हिन्दी काव्य रचना है। हरिऔध जी को काव्यप्रतिष्ठा "प्रियप्रवास" से मिली। इसका रचनाकाल सन् 1909 से सन् 1913 है। "प्रियप्रवास" विरहकाव्य है। कृष्णकाव्य की परंपरा में होते हुए भी, उससे भिन्न है। "हरिऔध" जी ने