नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को धर्म के नाम पर वोट मांगने को गैरकानूनी बताता हुए एतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने कहा कि धर्म, जाति और भाषा का इस्तेमाल किसी भी प्रकार से वोट मांगने के लिए नहीं किया जाया सकता। कोर्ट की 7 जजों की संवैधानिक पीठ ने 4-3 से ये फैसला दिया है। फ़ैसले में कहा गया कि प्रत्याशी या उसके समर्थक धर्म, जाती, समुदाय और भाषा के नाम पर वोट मांगते हैं तो यह गैरकानूनी होगा। कोर्ट ने कहा कि चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष पद्धति है। माना जा रहा है कि आने वाले 5 राज्यों के चुनावों पर इस फैसले का असर पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुत्व मामले में कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये फैसला दिया गया है।
फैसले का उल्लंघन है ग़ैरकानूनी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई भी उम्मीदवार ऐसा करता है तो उसे जनप्रतिनिधित्व क़ानून के तहत भ्रष्ट आचरण माना जाएगा। जो कि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123(3) में होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया है और चुने गए उम्मीदवार का कार्यकलाप भी धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि भगवान और मनुष्य के बीच का रिश्ता व्यक्तिगत मामला है। कोई भी सरकार किसी एक धर्म के साथ विशेष व्यवहार नहीं कर सकती। कोई भी सरकार खुद को एक धर्म विशेष के साथ नहीं जोड़ सकती।
उच्चतम न्यायालय ने यह फ़ैसला बहुमत के आधार पर है। उन्होनें अपने फ़ैसले में कहा कि धर्म के आधार पर वोट देने की कोई भी अपील चुनावी कानूनों के तहत भ्रष्ट आचरण के बराबर है। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि भगवान और मनुष्य के बीच का रिश्ता व्यक्तिगत मामला है। कोई भी सरकार किसी एक धर्म के साथ विशेष व्यवहार नहीं कर सकती, एक धर्म विशेष के साथ खुद को नहीं जोड़ सकती। शीर्ष न्यायालय में बहुमत का विचार प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर, न्यायमूर्ति एम बी लोकुर, न्यायमूर्ति एल एन राव, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे का था, जबकि अल्पमत का विचार न्यायमूर्ति यू यू ललित, न्यायमूर्ति ए के गोयल और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ का था ।