नई दिल्लीः गंभीरता। मौलिकता। बौद्धिकता। ये तीन तत्व किसी लेख की गुणवत्ता और लेखक की साख तय करते हैं। तीनों तत्वों का दर्शन विराग गुप्ता के लेखों में साफ दिखता है। विराग गुप्ता यूं तो पेशे से सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं, मगर चाहे बोझिल आर्थिक विषय हों या फिर जटिल कानूनी मसले, जब उनकी कलम चलती है तो पाठकों के लिए सब कुछ आसान हो जाता है। लेख लिखते समय भी विराग नाम के अनुरूप किसी वैचारिक विचारधारा से राग नहीं रखते। यानी विराग ही रखते हैं। यही वजह है कि रवीश जैसे पत्रकार भी विराग की राजनैतिक विचारधारा भांपने में खुद को नाकाम पाते हैं। रवीश कहते हैं कि- विराग उस जगह पर खड़े होकर सवाल करते हैं जिससे तय करना मुश्किल हो जाता है कि यह व्यक्ति किस दल का है। आज विराग गुप्ता का जिक्र इसलिए कि उनकी नई पुस्तक हाथ लगी है। शीर्षक है-डिजिटल इंडिया और भारत। दो सौ पेज और ढाई सौ रुपये कीमत की इस पुस्तक में विराग ने अपने उन सभी ब्लॉग्स को जगह दी है, जो उन्होंने एनडीटीवी के विचार पेज के लिए लिखे हैं। विराग गुप्ता कई प्रमुख अखबारों में
नियमित रूप से स्तंभ लिखते हैं।
क्यों खास है यह पुस्तक
वेबसीरीज के तहत लिखे लेखों के संग्रह की यह पुस्तक उन पाठकों के लिए बेहद उपयोगी है, जिन्हें नोटबंदी, डिजिटल इंडिया, जीएसटी, ईपीएफ पर टैक्स के रोलबैक जैसे जटिल विषयों को आसान भाषा में समझना है। विराट के लेखों के कंटेंट स्तरीय हैं। खासकर अंग्रेजी भाषा के अखबारों में प्रकाशित होने वाले लेखों के कंटेंट की बराबरी करते हैं। अगर आपको असहिष्णुता, संघवाद पर बहस के लिए कंटेंट की तलाश हो या फिर राष्ट्रवाद और गुड गवर्नेंस की राह की मुश्किलें पर जानकारी लेनी हो। संसद के दंगल में मात खाते संवैधानिक नियम-कायदे हों, डिजिटल इंडिया की चुनौतियों से बेखबर सरकार को बाखबर करते लेख, जीडीपी के आंकड़े और विकास का सच बयां करती तस्वीर उकेरना हो सब कुछ इस पुस्तक में हैं। हां विराग गुप्ता की यह पुस्तक आपको यूपी में पॉवर ऑफ अटॉर्नी की बंदरबाट से जूझते यूपी के साथ डर्टी पॉलिटिक्स के साथ सामाजिक हलचलों और राजनीति क के दौर में अदालतों की भूमिका की सैर कराती है।