नई दिल्लीः तुम आज मेरी गाड़ी की स्टेयरिंग नहीं संभालोगे। आज तुम मेरी सीट पर बैठो। मैं स्टेयरिंग संभालूंगा। तुम्हारे रिटायरमेंट पर मेरा गाड़ी चलाने का मन कर रहा है। जब महाराष्ट्र के अकोला जिले के डीएम श्रीकांथ ने अपने ड्राइवर दिगंबर ठाक से यह बात कही तो दिगंबर की आंखें खुशी के आंसुओं से छलछला उठीं। और वे नहीं साहब...नहीं साहब कहने लगे फिर भी कलेक्टर साहब नहीं माने और अपने ड्राइवर को पीछे बैठाकर घर से ऑफिस तक लेकर आए। ऐसी विदाई की उम्मीद किसी सरकारी ड्राइवर ने सपने में भी नहीं सोची होगी, जैसी विदाई दिगंबर को मिली।
डीएम खुद पहुंच गए घर ड्राइवर को लेने
खास बात है कि डीएम श्रीकांथ ने अपनी नीली बत्ती कार को पहले सरकारी आवास पर फूलों से सजवाया। फिर खुद कार ड्राइव करते हुए ड्राइवर दिगंबर के घर पहुंचे। अपने घर कलेक्टर को आया देख दिगंबर का परिवार खुशी से झूम उठा तो आंखों में अचरज भी रहा। डीएम ने कहा कि तुमने इतने वर्षों तक तमाम कलेक्टर की सेवा की है, आज तुम्हारी सरकारी सेवा के आखिरी दिन मैं ड्राइवर बनना चाहता हूं। ड्राइवर दिगंबर ने डीएम से हाथ जोड़ लिए-साहब यह मेरी औकात नहीं। मुझे इतना सम्मान मत दीजिए। मगर डीएम मानने को तैयार ही नहीं हुए। डीएम की जिद पर ड्राइवर दिगंबर को झुकना पड़ा।
जब डीएम की सीट से ड्राइवर को उतरता देख ऑफिस वाले रह गए दंग
सुबह दस बजे अकोला कलेक्ट्रेट में डीएम ऑफिस के सामने कलेक्टर की कार आई। कार को सजा देख लोगों को अचरज हुआ। जब कार की पीछे स्थित डीएम की सीट पर ड्राइवर को और आगे ड्राइवर की सीट पर डीएम को स्टाफ ने बैठा देखा तो उनका अचरज और बढ़ गया। गाड़ी से उतरते ही डीएम ने सबका अभिवादन स्वीकारने के बाद कहा कि आज हमारे चालक दिगंबर की सरकारी सेवा का आखिरी दिन है। आज रिटायर हो रहे हैं। तो मैने सोचा क्यों ने आज मैं इन्हें कुछ सरप्राइज दूं। तो मैं ड्राइवर बन गया और ये हमारे साहब।
18 कलेक्टर की गाडी चलाई मगर श्रीकांथ सर ने जो सम्मान दिया जिंदगी भर नहीं भूलेगा
कलेक्टर श्रीकांथ की ओर से इतना बड़ा मान-सम्मान मिलने पर ड्राइवर दिगंबर ठाक ने कहा कि उन्होंने 35 साल सरकारी ड्राइवर की नौकरी की। कुल 18 जिला कलेक्टर की गाड़ी चलाई। मगर जो सम्मान श्रीकांथ सर ने दिया वह सपने भी नहीं सोचा था। वहीं डीएम श्रीकांत ने कहा कि दिगंबर ने हमेशा अफसरों को सुरक्षित मंजिल तक पहुंचाने की सेवा का बखूबी निर्वहन किया। ऐसे में उन्हें यादगार तोहफा पाने का हक था।