पात्र: 1: अमन: भ्रमित मानसिक स्थिति में एक युवा व्यक्ति।
2: डॉ. समीर: एक अनुभवी मनोचिकित्सक।
अमन एक भ्रमपूर्ण मानसिक स्थिति में है, जिसको डिलूशनल डिसऑर्डर (Delusional Disorder) कहा जाता है, जिसमें उसे लगता है कि वह एक मनोचिकित्सक है। वास्तविकता में, वह खुद एक मरीज है और थेरेपी लेने आया है।
स्थान: एक साधारण थेरेपी कक्ष। दीवार पर मोटिवेशनल पोस्टर, एक तरफ कुर्सी और सामने सोफा। कमरे में हल्का शांत संगीत बज रहा है।
(कमरे में अमन बैठा है, आत्मविश्वास से भरी मुद्रा में। डॉ. समीर काउच पर आराम से बैठे हैं, नोटबुक लिए हुए।)
अमन: (गले में अदृश्य स्टेथोस्कोप टटोलते हुए) "तो, आज की चर्चा कहाँ से शुरू करें, समीर?"
डॉ. समीर: (हल्की मुस्कान के साथ) "अमन, चर्चा तो आपको शुरू करनी है। यहाँ आप अपनी बात रखने आए हैं।"
अमन: (हैरानी से) "समीर, आप मजाक कर रहे हैं। मरीज तो आप हैं, और मैं आपकी मदद के लिए यहाँ हूँ। बताइए, किस तरह की उलझन महसूस कर रहे हैं आजकल?"
डॉ. समीर: (गंभीरता से) "मुझे लगता है कि हम पहले यह स्पष्ट करें कि आप यहाँ क्यों आए हैं। आपको याद है, आपने अपॉइंटमेंट बुक किया था?"
अमन: (हंसते हुए) "ओह! यह सिर्फ औपचारिकता थी। मैं बस देखना चाहता था कि एक असली मरीज का व्यवहार कैसा होता है। वैसे, आपके चेहरे पर चिंता के लक्षण साफ दिखाई दे रहे हैं। क्या मैं सही कह रहा हूँ?"
डॉ. समीर: (ध्यानपूर्वक) "चलिए, मान लेते हैं। फिर आप ही बताइए, इस चिंता का इलाज क्या होगा?"
अमन: (गहरी सांस लेते हुए) "सबसे पहले, आपको खुद को स्वीकार करना होगा। यह भ्रम की स्थिति आपकी असली समस्या है। आप जो भी संघर्ष कर रहे हैं, वह बचपन से जुड़ा हो सकता है।"
डॉ. समीर: (मुस्कुराते हुए) "दिलचस्प विश्लेषण है। क्या आप थोड़ा और विस्तार से बता सकते हैं?"
अमन: (नोटबुक का अभिनय करते हुए) "बिलकुल! आपकी शारीरिक भाषा बता रही है कि आप अपनों के बीच अकेलापन महसूस करते हैं। यह अहसास आपके भीतर अपराधबोध को जन्म दे रहा है।"
(डॉ. समीर थोड़ी देर तक अमन को घूरते हैं, फिर धीमे से कुर्सी पर झुककर बैठते हैं।)
डॉ. समीर: " डॉक्टर, क्या आप थोड़ा याद करके मुझे अपने परिवार के बारे में सकते हैं? आपके घर में कौन-कौन है?"
अमन: (थोड़ा सोचते हुए) "मेरे माता-पिता, लेकिन... वे अब मेरे साथ नहीं हैं। वो तो बचपन में ही चले गए थे।"
डॉ. समीर: "तो आप किसके साथ रहते हैं?"
अमन: (संकोच करते हुए) "अकेला हूँ, लेकिन मुझे अकेलापन महसूस नहीं होता। उनकी परछाइयाँ अब भी मेरे साथ हैं।"
डॉ. समीर: (ध्यानपूर्वक) "यह परछाइयाँ कौन हैं, डॉक्टर?"
अमन: (गहरी आवाज में) "वे मुझे निर्देश देती हैं। मैं बचपन से ही डॉक्टर बनना चाहता था और उनके कहने पर ही मैं डॉक्टर बना। लेकिन हमेशा वो परछाई सही नहीं होती, कभी-कभी वे गलत भी होती हैं, लेकिन मैं उन्हें सही भी करता हूँ।"
(डॉ. समीर कमरे में रखे शीशे की ओर इशारा करते हैं।)
डॉ. समीर: "अमन, क्या आप इस शीशे में देख सकते हैं?"
अमन: (थोड़ा झिझकते हुए) "क्यों नहीं।"
(अमन शीशे के सामने खड़ा होता है। वह खुद को देखता है लेकिन उसके चेहरे पर भ्रम छा जाता है।)
अमन: (धीमे स्वर में) "यह... यह मैं हूँ? लेकिन... मैं तो डॉक्टर हूँ!"
डॉ. समीर: (धीरे से) "नहीं, अमन। आप मरीज हैं। आप यहाँ मेरी मदद लेने आए हैं।"
अमन: (हड़बड़ाते हुए) "नहीं! यह आप हैं जो भ्रम में हैं। मैं डॉक्टर हूँ। आप मरीज हैं।"
(अमन की आवाज ऊँची हो जाती है, और वह गुस्से से कुर्सी पर बैठ जाता है।)
डॉ. समीर: (शांत स्वर में) "अमन, यह भ्रम एक रक्षा तंत्र (defense mechanism) है। जब आप किसी गहरे दर्द से बच नहीं पाते, तो आपका दिमाग एक नई दुनिया बना लेता है और इस दुनिया को काल्पनिक संसार (imaginary world) कहते हैं, जिसका असल दुनिया से कोई लेना देना नहीं होता, यह आपको असलियत से दूर ले जाता है। क्या आप मुझे अपना दर्द बता सकते हैं?"
अमन: (आँखों में आँसू के साथ) "जब वे गए थे... मुझे बचाने के लिए... मैं बहुत छोटा था। मैं उनकी मदद नहीं कर सका। मैं कायर था।"
डॉ. समीर: (धीरे-धीरे) "आपके माता-पिता की मौत?"
अमन: (आँखें बंद करते हुए) "हाँ... कार दुर्घटना। मेरी गलती थी। मैंने जिद की थी कि वे मुझे घुमाने ले जाएँ। और फिर... सब खत्म हो गया।"
डॉ. समीर: "अमन, यह आपकी गलती नहीं थी। आप केवल एक बच्चे थे।" तुमने उस हादसे की वजह खुद को समझ लिया है,जबकि ऐसा कुछ नहीं है, तुम आत्मग्लानि की सीमा को भी पार कर चुके हो।
अब तुमको यहां तब तक आना होगा जब तक तुम उन यादों से बाहर नहीं आ जाते।
(इतना कहकर डॉ. समीर अमन को वापस उसके संरक्षक के पास भेज देते हैं।)
उसके बाद प्रत्येक थेरपी सत्र में अमन धीरे-धीरे अपनी यादों का सामना करता है और समझता है कि वह खुद एक मरीज है। यह यात्रा उसे काल्पनिक दुनिया से सच्चाई की ओर ले जाती है और वह मानसिक रूप ठीक हो जाता है।