पात्र:
सीमा (माँ)
रमेश (पिता)
अनुज (बेटा, 15 साल का)
नेहा (बेटी, 10 साल की)
सुबह का समय है। सीमा रसोई में नाश्ता बना रही है। अनुज और नेहा स्कूल के लिए तैयार हो रहे हैं, और रमेश ऑफिस जाने की तैयारी में है।
सीमा (रसोई से आवाज़ लगाती है):
अनुज के पापा, चाय तैयार है। जल्दी से पी लो, वरना देर हो जाएगी।
रमेश (घड़ी देखते हुए):
हाँ, ला रहा हूँ। वैसे अनुज तैयार हो गया या फिर वही आलस कर रहा है?
अनुज (हड़बड़ाते हुए):
नहीं पापा, मैं तैयार हूँ! मम्मी, टिफिन दे दो।
सीमा (टिफिन पकड़ाते हुए):
लो बेटा, और हाँ, नेहा को भी स्कूल छोड़ते जाना।
नेहा (शरारत से):
भैया, इस बार जल्दी चलना, वरना मेरी दोस्त मुझे फिर से चिढ़ाएंगी कि मैं रोज़ लेट क्यों आती हूँ!
अनुज (मजाक करते हुए):
चलो, इस बार समय पर पहुँचा दूँगा, राजकुमारी जी!
इसके बाद सभी अपने दैनिक कामों के लिए निकल जाते हैं।
फिर शाम का समय होता है। सभी लोग दिन भर की थकान के बाद घर पर बैठे होते हैं। तभी सीमा के मोबाइल पर बिजली का बिल आता है।
सीमा (चिंतित होकर):
अनुज के पापा, इस बार बिजली का बिल बहुत ज़्यादा आ गया है। महीने का बजट पहले ही तंग चल रहा है और अब ये...
रमेश (थोड़ा परेशान होकर):
अरे! इतनी ज़्यादा राशि? इस महीने तो कोचिंग की फीस भी भरनी है और घर के कुछ काम भी करवाने थे।
सीमा (सोचते हुए):
हम्म... हमें कुछ खर्चों में कटौती करनी पड़ेगी। इस बार शायद कुछ ख़रीददारी टालनी पड़ेगी।
रमेश (समझदारी से):
बिल्कुल। लेकिन अनुज की कोचिंग की फीस तो हर हाल में भरनी पड़ेगी। उसकी पढ़ाई में रुकावट नहीं आनी चाहिए।
अगली सुबह, सीमा और रमेश दोनों मिलकर समस्या पर विचार कर रहे होते हैं।
सीमा (प्रस्ताव रखते हुए):
अनुज के पापा, एक काम करते हैं। कुछ दिनों तक हम बिजली की बचत पर ध्यान दें। फालतू के पंखे, लाइट्स बंद रखें। साथ ही, इस महीने कोई नया सामान न लें।
रमेश (सहमत होते हुए):
बिलकुल, ये सही रहेगा। और मैं ऑफिस में कुछ ओवरटाइम कर लूँगा ताकि थोड़ी और आमदनी हो सके।
सीमा (मुस्कुराते हुए):
आप हमेशा घर की जिम्मेदारी अच्छी तरह से निभाते हो। हम सब मिलकर इसे भी संभाल लेंगे।
शाम को सीमा बच्चों से भी इस बारे में बात करती है।
सीमा:
बच्चों, इस बार हमें बिजली का बिल बहुत ज़्यादा आ गया है, तो कुछ दिनों तक हमें थोड़ी बचत करनी पड़ेगी। दिन में कम बिजली इस्तेमाल करेंगे और रात में भी जल्दी सोने की आदत डालेंगे।
अनुज (समझदारी से):
मम्मी, हम स्कूल में भी पर्यावरण के बारे में यही पढ़ते हैं कि बिजली की बचत करनी चाहिए। मैं और नेहा ध्यान देंगे कि फालतू लाइट्स और पंखे न चलें।
नेहा (खुश होकर):
हाँ मम्मी, मैं तो अब जल्दी सो जाऊँगी ताकि ज्यादा बिजली न खर्च हो!
कुछ हफ्तों बाद, रमेश ओवरटाइम करके थोड़ी अतिरिक्त आमदनी कर लेता है और सीमा की बचत की आदतों से घर का बजट भी सही हो जाता है। बच्चे भी बिजली की बचत करने में मदद करते हैं।
रमेश (मुस्कुराते हुए):
देखा, अनुज की मम्मी, हमारी छोटी-छोटी कोशिशों से बड़ी समस्या भी हल हो गई।
सीमा (संतोष से):
हाँ, परिवार की एकजुटता से हर मुश्किल आसान हो जाती है। बस हमें एक-दूसरे का साथ देना होता है।
"मध्यम वर्गीय जीवन में हर छोटी-मोटी परेशानी को मिलजुल कर हल करना ही परिवार की सबसे बड़ी ताकत है।