आज हम सभी जीवन में शारीरिक अंगों का महत्व समझते हैं और हम सभी अपने जीवन में सच भी समझते हैं कि शरीर के सभी अंग महत्वपूर्ण होते हैं।
आज हम दिव्य दृष्टि बाधित लोग जो है उनकी बेबसी और हकीकत में एक कहानी सच और कल्पना के साथ आज दृष्टि बाधित लोगों के लिए सरकार भी प्रयासरत हैं फिर भी सभी को सहयोग नहीं मिल पाता है यह घटनाक्रम कहानी स्वरुप सड़क पर दृष्टि बाधित लोग में एक नारी जोकि जनसाधारण से मांग मांग कर गुजारा करती और कभी रेलवे स्टेशन और कभी बस स्टॉप पर रात दिन बीताती थी।आने जाने वाले स्वस्थ संपन्न लोग और नौजवान भी उसे छेड़ते हुए भी न हिचकिचाते थे। और जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ रही थी उसके शारीरिक रूप और अंग भी विकसित हो रहे थे। बस यही वो समाज और हम हैं जो दिव्य दृष्टि बाधित लोगों को हम सबकुछ देखने वाले भी अंधों की भांति है। और रात के सन्नाटे में उस दिव्य दृष्टि बाधित लोग में उस नारी का शारीरिक शोषण करते थे।और एक दिन ऐसा भी आ गया वह दिव्य दृष्टि बाधित लोग में वह नारी पेट से हो गई।अब उसकी जिंदगी में तूफान आ गया वह दिव्य दृष्टि बाधित लोगों में नारी तन भी न ढक पाती और दिनभर समाज में लोगों के परिहास का विषय वस्तु बन गयी। अब जब उसका गर्भ पूर्ण हो गया । वह सड़क पर प्रसव पीड़ा से जूझ रही तब ईश्वर ने तो अपना दायित्व निभाया और देश के प्रशासन तंत्र को उसे प्रसव के लिए अस्पताल भेजना पड़ा जहां उसने बच्चे को जन्म दिया और खुद शारीरिक स्वस्थता के न होने के कारण मृत्यु को प्राप्त हुई। और बच्चा संरक्षण विभाग को सौंपा दिया गया।
आज भी यही कहानी कहीं न कहीं सच होती हैं परंतु आज सरकार जागरुक हैं परन्तु हम सभी को भी ऐसे दिव्य दृष्टि बाधित लोगों की लाचारी और बेबसी का फायदा नहीं उठाना चाहिए। वैसे तो दिव्य दृष्टि बाधित लोगों के लिए वैज्ञानिक युग में विज्ञान ने कई अविष्कार कर दिए हैं बस वहां तक पहुंचना भी एक कठिन राह है। एक सच तो यह है कि हम सभी लोगों की सोच स्वार्थ और फरेब से जुड़ी है।
आओ हम सभी इस कहानी माध्यम से सच और हकीकत समझे और दिव्य दृष्टि बाधित लोगों को सहयोग और समर्थन दे। न कि उनकी लाचारी का उपहास और फायदा उठाएं। सच तो यह है कि हम दिव्य दृष्टि बाधित लोग या लोगों का सहयोग करें और उनको सरकार के साथ मिलकर संगठन में पहुंचाए।
दिव्य दृष्टि बाधित लोग भी एक मानव समाज के साथ हैं। उनका सम्मान और सहयोग होना चाहिए।