नई दिल्लीः छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की बहू ऋचा को स्टॉल लगाकर सब्जी बेचते देख लोग अचरज में पड़ गए। शहर के संजय बाजार में लगाए उनके स्टॉल की पूरी सब्जी महज दस मिनट में ही बिक गई। ल
प्रधानमंत्री ऐसे हो तो जनता के तो क्या कहनेआपने ये गाना तो सुना होगा 'सारे नियम तोड़ दो, नियम पे चलना छोड़ दो, अपने नित नए नियम बनाओ जिसमे अपना फायदा हो खुद ही मालिक बन जाओ,' बस दोस्तों अपने देश की जनता भी कुछ ऐसी ही है। चाहे देश में कितने ही कानून और नियम बना लो, लेकिन जनता सब जानती है बॉस
भारत 1947 मेंअंग्रेजों के चंगुल से स्वतंत्र हुआ था। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत लंबे समयतक भारतीयों ने विभाजन का दर्द झेला। कुछ संभले तो 1962 का भारत-चीन युद्ध, 1965में भारत-पाक युद्ध और दक्षिण भारतीयों का हिंदी विरोधी आंदोलन। प्रधा
अपने यहां सीडी में भजन बजते हैं. कभी प्यासे को पानी पिलाया नहीं बाद अमृत पिलाने से क्या फायदा. मने पानी पिलाना सबसे बड़ा पुण्य कहा जाता है. लेकिन कनाडा में इसका उल्टा केस हो गया. पिछली 29 नवंबर को एक अजीब केस और उससे भी अजीब सजा खबरों की मार्केट में आई. 48 साल की एक मोहतरमा, जिनका नाम है अनीता क्रैज
एक गांव के ग्रामीणों ने साम्प्रदायिक सोहार्द की एक ऐसी मिसाल पेश की है जिसे देखकर सभी को शिक्षा लेनी चाहिए. उनके इस कार्य के लिए हर कोई तारीफ कर रहा है. दरअसल, हम बात सीकर जिले की सीमा पर बसे कोलिडा गांव की कर रहे हैं. इस गांव में मुस्लिम समाज के लोगों ने अपनी दरिया दिली दिखाते हुए हिंदू समाज द्वारा
प्रधानमंत्री रविवार को आगरा में बोले. कुछ अतिरिक्त आक्रामक होकर बोले. वो यहां एक हाउसिंग स्कीम के उद्घाटन के लिए पहुंचे थे, जिसके तहत 3 साल में 1 करोड़ मकान बनाने का लक्ष्य लिया गया है. लेकिन उन्होंने अपने भाषण का बड़ा हिस्सा नोटबंदी के बचाव में खर्च किया.उन्होंने
अब अभिव्यक्ति के सारे खतरेउठाने ही होंगे. तोड़ने ही होंगे मठ और गढ़ सब. ****अन-खोजी निज समृद्धि का वह परम उत्कर्ष, परम अभिव्यक्ति....मैं उसका शिष्य हूँ वह मेरी गुरु है, गुरु है!! **** प्रत्येक मानवीय स्वानुभूत आदर्श विवेक-प्रक्रिया, क्रियागत परिणति!! खोजता हूँ पठार... पहाड़.... समुंदर जहाँ मिल सके मुझे
ये जो प्रदूषण की बात करके हम चिंतित होते हैं तो क्या वाकई हम बढ़ते प्रदूषण के कारण चिंतित होते हैं ये जो महँगाई की बात करके हम चिंतित होते हैं तो क्या वाकई हम कीमतों की मार से चिंतित होते हैं और ऐसी चिंताएं हम तभी क्यों करते हैं जब सबके साथ होते हैं तब ऐसी ही च