भारत 1947 में अंग्रेजों के चंगुल से स्वतंत्र हुआ था। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत लंबे समय तक भारतीयों ने विभाजन का दर्द झेला। कुछ संभले तो 1962 का भारत-चीन युद्ध, 1965 में भारत-पाक युद्ध और दक्षिण भारतीयों का हिंदी विरोधी आंदोलन। प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के दौर में शुरु हुआ सनसनीखेज घटनाओं का दौर। 1969 में राष्ट्रपति चुनाव के निर्दलीय उम्मीदवार श्री वी.वी.गिरी चुनाव जीते और कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी चुनाव हार गए। इस चुनाव से पूर्व जब अमेरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निकसन भारत आए थे तो उनकी आगवानी एवं बिधाई श्री एम. हिदायतुल्ला उस समय के मुख्य न्यायधीश ने बतौर कार्यवाहक राष्ट्रपति की थी। 1971 से प्रभावी 26वें संविधान संशोधन के अनुसार रजवाड़ों के प्रीवी पर्स रद्द कर दिए गए। अंग्रेजी शासन की समाप्ति के उपरांत रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने के एवज में रियासतों के रजवाड़ों को पेंशन मिलती थी जो इस संविधान संशोधन के माध्यम से समाप्त कर दी गई। श्रीमती इंदिरा गांधी ने 19 जुलाई,1969 को 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया तथा अपने दूसरे कार्यकाल 1980 में 6 और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। उन्हीं के दौर में 55 भारतीय जनरल बीमा कंपंनिओं और 52 अन्य सामान्य कंपंनिओं का राष्ट्रीयकरण किया गया था।
1971 में भारत ने भारत-पाक युद्ध जीता। न केवल जीता पाकिस्तान की लगभग एक लाख सेना ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया जोकि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद किसी सेना की ओर से किए गए आत्मसमर्पण का विश्व रिकॉर्ड है, 1974 में पोखरान में प्रमाणू बम का परीक्षण करके पूरी दुनिया को हिला दिया। श्रीमती इंदिरागांधी के कार्यकाल में ही भारत खाद्यान्न में आत्मनिर्भर हुआ था मगर 1974 के परमाणू परीक्षण के बाद नाटो देशों के दबाव में अनेक देशों की ओर से भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए गए। देश में महंगाई एकदम से बढ़ गई जोकि जनता के लिए अहितकर थी। उनके विरोधी उनपर हावी हो गए। उन्हें मजबूर होकर 1975 में देश में आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी। आपातकाल के दौरान ही संविधान में, 42 वां संविधान संशोधन और राजभाषा नियम, 1976 जैसी प्रमुख सनसनियां सामने आईं। मगर श्रीमती इंदिरा गांधी 1977 का आम चुनाव हार गईं। उनके दूसरे कार्यकाल की त्रास्दियां 1984 का ब्लू स्टार ऑपरेशन और पूरे देश में सिखों के विरुद्ध दंगे तो आज भी भूत बनकर कांग्रेस का पीछा कर रही हैं। उनके बाद केवल एक सनसनी श्री राजीव गाँधी ने अयोध्या में राम मंदिर के ताले खुलवाकर फैलाई जोकि कांग्रेस की नीतियों से हटकर थी जिसका लाभ भारतीय जनता पार्टी को आजतक हो रहा है और वह सत्ता का सुख भोग रही है।
1991 से 1996 तक चली श्री पी.वी.नरसिमहा राव के नेतृत्व में चली कांग्रेस की अल्पमत सरकार ने तो ऐसी सनसनियां फैलाईँ जिनसे भाजपा को झोलियां भर भरकर लाभ मिल रहा है। डॉ मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाकर उदारीकरण की नीति लागू कराकर भारत की उद्योग और अर्थनीति में भारत की जनता के विरुद्ध जाने वाले निर्णयों को लागू कराना, 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस को रोकने में असफलता और कश्मीर नीति से संबंधित पाकिस्तान को माकूल जवाब देने के लिए संयुक्त राष्ट् संघ में श्री अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में भारतीय दल संयुक्त राष्ट्र संघ में भेजना। 1998 से 2004 तक चली एनडीए की सरकार में पाकिस्तान में छुपे भारतीय मुजरिमों की एक सूची इस आग्रह के साथ पाकिस्तान को सौंपी गई थी कि इन मुजरिमों को भारत को सौंपा जाए। बदले में पाकिस्तान की ओर से भी एक सूची आई और कहते हैं कि उसमें उस समय के भारतीय उप प्रधानमंत्री श्री लाल कृष्ण आडवाणी जी का भी नाम था। दिसंबर,1999 में भारतीय विमान का अपहरण और बदले में दी गई फिरौती व पाकिस्तानी आतंकवादियों का छोड़ा जाना प्रमुख सनसनिओं में शामिल है। डॉ मनमोहन सिंह 2004 से लेकर 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। उनसे जितना बन पड़ा किया।
मई, 2014 से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही वर्तमान सरकार की कुछ सनसनियां निम्नानुसार हैं। प्रधानमत्री के शपथग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री सहित सभी सार्क प्रमुखों को आमंत्रित किया, फिर प्रधानमंत्री का सपना सार्क देशों के लिए उपग्रह प्रेषण का प्रस्ताव आया, नमामी गंगे योजना, स्वच्छता अभियान, योगा दिवस, बुलेट ट्रेन चलाने की घोषणा, जनधन योजना के खाते खोलने का ढिंढोरा(इन्हीं खातों में 25.11.2016 तक 64 हजार करोड़ से अधिक की राशी जमा हो चुकी है, जिससे सरकार परेशान है कि यह कालाधन भी हो सकता है), गरीबों व किसानों का फसल तथा बीमा योजना का ढिंढोरा, सर्जीकल स्ट्राईक, प्रधानमंत्री की अंधाधुंध विदेश यात्रा एं और एक के बाद एक अनेक देशों को लाभ पहुंचाना और सबसे बड़ी सनसनी नोटबंदी। 08 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा होते ही पूरा देश अचंभित हो गया। दस प्रतिशत जनता के पास जमा कालेधन को बाहर निकालने के लिए देश-विदेश की जनता को मिलाकर भारत की पूरी आबादी के बराबर जनता को भीखारी बनने के लिए मजबूर कर दिया गया है। राजस्थान के पुष्कर में तो स्वीडन व इजरायल के नागरिकों को पैसे की कमी के कारण गाना गाकर व करतब दिखाकर भीख के सहारे अपना खर्च चलाना पड़ रहा है।
पैसा न होने के कारण लोग अपने रिश्तोदारों का ईलाज नहीं करवा पा रहे हैं और यहां तक कि किसी मरीज की मृत्यु के बाद बिना पैसे मृतक का शव भी नहीं दिया जा रहा जिसका शिकार भाजपा के कद्दावार नेता सदानंद गौडा भी हो चुके हैं। खाते में पैसा होने के बावजूद मजबूर पिता अपनी बेटी की शादी के खर्च की तंगी से परेशान होकर आत्महत्या को मजबूर है। गरीब व मजदूर बेरोजगार हैं तथा औसतन 50 प्रतिशत व्यापार बंद है। विश्वबैंक के मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बसू ने अपने एक ट्वीट में यह दावा किया है कि विमूद्रीकरण का लाभों के मुकाबले नुकसान अधिक होगा। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एवं प्रमुख अर्थशास्त्री नोटबंदी को संगठित लूट करार दे चुके हैं व दावा कर रहे हैं कि भारत की जीडीपी 2 प्रतिशत नीचे जाएगी। पुलिस प्रशिक्षण में सिखाया जाता है कि 100 गुनाहगार चाहे बच जाएं किंतु एक निर्दोष नहीं फंसना चाहिए। मेडीकल साईंस के अनुसार भी अगर शरीर के किसी एक हिस्से पर चोट लगे या खराबी आ जाए तो इस तर्क के साथ कि मरीज का 1 से 6 प्रतिशत हिस्सा संक्रमित हो चुका है मरीज को जान से मार देना कहां की बुद्धिमानी है।
नोटबंदी के समर्थन में निम्न तर्क दिए जा रहे हैं:
1.नोटबंदी से भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी
2. कालाधन बाहर आ जाएगा
3.शिक्षा सस्ती होगी
4. आम नागरिक प्लास्टिक करंसी को प्राथमिकता देगा
5. आतंकवाद का खात्मा होगा और
6 . देश का गरीब अमीर हो जाएगा।
किंतु भारत देश में एक वास्तविकता यह भी है। भारत में विभिन्न बैंकों की 1 लाख 32 हजार 587 शाखाएं हैं। सामान्य औसत 9500 नागरिकों पर एक शाखा। वास्तविकता यह भी है कि भारत के 250 जिलों में केवल 100 शाखाएं हैं। गाँवों में कुल 49902 शाखाएं हैं जबकि भारत की 69 प्रतिशत जनता गाँवों में रहती है। देश में कुल एटीएम 2 लीख 1 हजार 867 हैं जिनमें से 70 प्रतिशत मुख्यत: शहरों में हैं। 65 लाख बैंक ग्राहकों की जानकारी लीक हो जाना जनता के दिमाग में अभी ताजा है। देशी विदेशी अपराधी नित नए हथकंडे अपनाकर बैंकग्राहकों से ठगी कर चुके हैं। जब भारत की 60 प्रतिशत जनता के खाते ही नहीं तो प्लास्टिक करंसी का सपना दूर की कौड़ी है उल्टा ग्राहकों का बैंकों के प्रति अविश्वास बढ़ेगा। प्लास्टिक करंसी और विमूद्रीकरण के मामले में केवल आस्ट्रेलिया ही ऐसा एकमात्र देश है जिसे इस अभियान में सफलता मिली है। बाकी सभी देशों को असफलता ही हाथ लगी है। यूएसएसआर(वर्तमान में रुस) के मिखाइल गोर्बाच्योव ने 1991 में यह प्रयास किया था। नतीजा यह हुआ कि उसकी स्थिति सुधरने की बजाए यूएसएसआर के एक देश के बजाए 15 टुकड़े हो गए थे तथा नागरिकों के पास रुबल की बोरियां होने को बावजूद उन्हें एक किलो राशन नहीं मिल पा रहा था। हालांकि यह निर्णय लेने से पूर्व यूएसएसआर विश्व की एक महाशक्ति था।
भारत में हालात यह हैं कि छोटे नोट लेने के लिए दबाव बनाकर मंदिरों की दानपेटियों को खुलवाया जा रहा है ताकि छुट्टे की समस्या को कम किया जा सके । जनता भीखारियों को मिली 200-300 की भीख को पाँच सौ में खरीदने को तैयार है। केवल 14 प्रतिशत की 100 या उससे कम की नकदी के सहारे इतनी बड़ी सनसनी फैलाई गई है। नतीजन जनता में 10 के सिक्कों के जाली होने की अफवाह फैली। बाजार से नमक व चीनी के गायब होने की अफवाह भी फैली। सर्वोच्च न्यायालय की तलख टिप्पणी आई कि इससे बाजारों में दंगे भड़क सकते हैं। बैंक कर्मियों सहित 70 से अधिक नागरिकों की मौत हो चुकी है। बैंक कर्मियों के संगठन ने आरबीआई गवर्नर का इस्तीफा मांगा है। संसद के बाहर 200 सांसदों का प्रदर्शन हो चुका है। जम्मू-कश्मीर में तीन बैंक लूटे जा चुके हैं। असम में कैश वैन लूटी गई तथा कर्मियों को भी या तो मार दिया गया या जख्मी कर दिया गया। जनता पाई-पाई के लिए मोहताज है।
नोटबंटी के 12 दिन बाद घटित इंदौर-पटना रेल हादसे के प्रभावितों को रेल्वे की ओर से 500 के पुराने नोट दिए गए मगर रिश्वतखोरों को नए नोटों में रिश्वत मिल रही है, सेना के साथ मुठभेड़ में मारे जा रहे आतंकवादियों से दो हजार के नए नोट बरामद हो रहे हैं, दो हजार के नकली नोट पकड़े जा रहे हैं। तो फिर चंद करोड़ की जाली करंसी और 6-10 प्रतिशत कालेधन(जिसमें सबसे अधिक विदेशों में होने का दावा है) के ईलाज के लिए देश-विदेश की 125 करोड़ से भी अधिक जनता को 50 दिन के लिए ही सही बेरोजगार करने का औचित्य क्या है। मुझे आज भी याद है कि पंजाब में आतंकवाद के दौर में आतंकवादियों द्वारा यह कहकर आम जनता को भरमाया जाता था कि आप बाजार में फूलगोबी की एक ट्रॉली लेकर जाएंगे और वापस लौटते समय वह ट्रॉली नोटों से भरी होगी।
हिंदु अमीरो की संपत्तियां तो चंद भ्रमित लोगों ने चिन्हित करली थीं कि खालिस्तान बनने के बाद यह सभी हमारी होने वाली हैं। नोटबंदी के फायदे गिनाते हुए यह ढिंढोरा पीटा जा रहा है कि इस कार्रवाई से गरीबी मिट जाएगी। झौंपड़ियों में रहने वाला गरीब महंगे हस्पतालों में ईलाज करा पाएगा और गरीब किसी भी महंगे स्कूल में जाएगा बहुत ही कम पैसे खर्च करके किसी अमीर की भांति अपने बच्चे को महंगे स्कूल में दाखिला दिला पाएगा क्योंकि जितने भी अमीर हैं उन के पास केवल कालाधन है और वह बाहर आ जाने पर उनके पास अपने बच्चों को स्कूल में पढ़ाने तथा हस्पतालों में ईलाज कराने को बहुत कम पैसे बचेंगे। भारत में प्रजातंत्र है और प्रजातांत्रिक सरकार जनता की, जनता के लिए और जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार है। वर्तमान में बातें हों रही हैं रामराज्य की। हिंदु राजा की। राम भी तो राजा ही थे तो फिर प्रजातंत्र कहां फिट होता है। भारत की जनता को केवल राजा की प्रजा बनने की आदत है जिसे बदलना बहुत कठिन है। भारत में इंग्लैंड की परंपरा को सच साबित किया जा रहा है, राजा मर गया - राजा की उमर लंबी हो । भारत में चढ़ते सूर्य को सलाम करने की आदत है। इसलिए मौकापरस्त अपना किरदार बदलकर सूर्य डूब गया है - सूर्य की आयू लंभी हो का अनुसरण करके सरकार के आत्मघाती कदम की कमियां बताने के बजाए इस कदम का अंध समर्थन कर रहे हैं।
यह आरबीई अधिनियम की धारा 24 और 26 को पूर्णरुपेण नहीं मानने का मामला भी है। न्याययालयों में नोटबंदी के विरुद्ध याचिकाएं आ रही हैं जिनमें मद्रास हाईकोर्ट में दो हजार के नोट पर संविधान संशोधन किए बिना राजभाषा हिंदी के उपयोग से भी संबंधित है। प्रमुख आपत्ति तो दो हजार के नोट लाने पर उठाई जा रही है। मुद्दे की बात यह है कि सरकार की इस कार्रवाई के उपरांत भारत का कोई भी नागरिक(पक्ष में या विपक्ष में) सरकार के इस निर्णय का विरोध करने की हिम्मत नहीं कर सकता। प्रत्येक समझदार व्यक्ति यह जानता है कि अगर जनता में जरा सा भी भ्रम फैला तो देश बर्बाद हो सकता है। इसलिए सरकार, विपक्ष और आमजन सबकी जिम्मेदारी बनती है कि स्पष्टत: सरकार के इस निर्णय का समर्थन करें।
मगर मीडिया ने समर्थन दिखाने के लिए हजारों गरीबों, मजदूरों, छोटे व्यापारियों और गृहणियों को अर्थशास्त्री बना दिया है। सरकार का समर्थन कर रहे अर्थशास्त्री तथा प्रधानमंत्री स्वयं कह रहे हैं कि इस निर्णय का कुछ समय के लिए ही सही प्रतिकूल प्रभाव तो होगा ही। वर्तमान में अगर कुछ मीडिया हाऊसों का बस चले तो अपनी सूर्यभक्ति दिखाने के लिए मुर्दे से भी कहलवा दें कि उनके जिंदा रिश्तेदार परेशान नहीं है। प्रधानमंत्री ने अपनी मन की बात में सूरत की दीक्षा परमार की शादी की तारीफ करते हुए कहा कि उसने तथा उसके परिवार ने मेहमानो को चाय व पानी पिलाकर शादी की। मगर अपने प्रमुख साथियों कर्नाटक के पूर्व मंत्री के.जनार्दन रेड्डी और गुजरात के पूर्व डीआजी डीजी बंजारा की ओर से अपने बच्चों की शाहीशादियों की आलोचना नहीं की(इन शादियों का संदर्भ लेना इसलिए जरुरी है कि यह दोनो सालोंसाल जेल में रहकर भी शाही जीवन जी सकते हैं)।
प्रयास सभी ओर से होना चाहिए केवल किसी
एक ओर से नहीं। नोटबंदी की घोषणा के बाद से प्रधानमंत्री एक विदेशयात्रा
कर चुके हैं तथा तीन बड़ी रैलियां। सोचना यही है कि जब देश में कुल करंसी का 14
प्रतिशत से भी कम है तो इतने शाही खर्च कहां से ? यदि
बराबरी नहीं होगी तो मेरा यह विषय नोटबंदी स्वतंत्र भारत
की सबसे बड़ी मानवीय सनसनी सार्थक होने वाला है। यह निर्णय देशहित की बजाए केवल
राजनैतिक ही माना जाएगा।