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एक झलक

23 मार्च 2023

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'द्वेषद्रोही' दरअसल एक ऐसे समय का ही सच है जहां समकाल एक झूठे राष्ट्रवाद की गिरफ्त में है और जाति-धर्म के ढांचे पर साम्प्रदायिकता विकृत रूप से फल-फूल रही है। 'देहाती लड़के' के बाद 'द्वेषद्रोही' शशांक भारतीय का दूसरा उपन्यास है। 'हिन्दी युग्म' से छपे इस उपन्यास में शशांक ने प्यार, दोस्ती और राजनीति का त्रिकोण रचा है जिसके कुछ पात्र शहर से देहात की यात्रा करते हैं, लेकिन यह यात्रा जिंदगी की तरह अधूरी रह जाती है, कहानी कहीं-कहीं चुप्पियों से भी आगे बढ़ जाती है, कहीं-कहीं यादों में पीछे लौटती है, जिसका अंत एक टीस पैदा करता है, यही टीस आखिर तक दिल और दिमाग में फंसी रहती है।

'द्वेषद्रोही' एक नए शब्द से लिखा एक नए तरह का उपन्यास है जो मुख्यत: आज का उपन्यास है और इसकी विशेषता है इसकी गंभीर सामाजिकता, जिसे बहुत दिलचस्प तरह से लिखा गया है, जिसकी प्रस्तुति और भाषा में हर वर्ग के पाठकों को बांधने की संभावना है। 

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रचनाएँ
द्वेषद्रोही
5.0
बीते दिनों में हम सब, पहले से ज्यादा अकेले हुए हैं। कितने दोस्तों को दूसरा शहर नौकरी की जंजीरों में बाँधकर अपने साथ ले गया और कितने अजीज रिश्ते राजतीनिक बहसों में उलझकर टूट गए। सोशल मीडिया की फिजूल प्रायोजित बहसों में लड़ते हुए हम अपने आसपास के लोगों से कितने दूर चले आए, अहसास नहीं हुआ। धर्म, जाति, वाद, ट्वीट, मीम, रील्स और वायरल होने की गुमनाम दुनिया में अपने-आपको ढूँढ़ने की कोशिश है यह किताब। हर तरफ फैलते जा रहे द्वेष के द्रोह में प्रेम की कहानी है 'द्वेषद्रोही'

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