विजय की बाइक हवा से बातें करती हुई चली जा रही थी। दोपहर का वक्त था। अप्रैल का महीना होने के बावजूद आसमान पर छाए बादल मौसम को खुशगवार बना रहे थे।
ब्लैक कलर के पटियाला सूट में जूड़ा बांधे बाइक पर दोनों तरफ़ पैर डाल कर अवनी दोनों हाथों को विजय के सीने पर लपेटे हुए किसी लता की तरह उससे चिपकी हुई पीछे बैठी थी।
वो जयपुर से सरिस्का जा रहे थे।
" जूड़ा खोल ले ! " विजय ने चिल्लाकर कहा।
" क्या ? " अवनी ने अपना कान विजय के मुंह के पास ले जाकर पूंछा क्योंकि तेज हवा के कारण उसे कुछ ठीक से सुनाई नहीं दिया था।
" जूड़ा खोल ले, अच्छा लगेगा। " विजय ने अपना चेहरा उसकी तरफ़ घुमाकर फिर से कहा।
अवनी ने अपना हाथ पीछे करके जूड़े की पिन निकाली। उसके रेशमी बाल हवा में पीछे की तरफ़ उड़ने लगे। उसने दोनों हाथ ऊपर करके सिर आसमान की तरफ़ उठाया, आंखें बंद कीं और बाइक पर खड़ी होकर ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी।
उड़ते हुए बाल उसे एक अलग ही प्रकार के आनंद की अनुभूति करा रहे थे।
विजय ने अपना एक हाथ पीछे करके उसे पकड़कर उसे बैठाने की कोशिश की। इस कोशिश में बाइक लहराई। अवनी तेजी से वापस बैठ गई। विजय ने बाइक को कंट्रोल किया।
दोनों जोर जोर से हंसने लगे।
" तू मरवाएगी ! " विजय ने हंसकर कहा।
" अच्छा है ना ! साथ में मरेंगे। " अवनी ने बड़े रोमांटिक अंदाज में जवाब दिया।
विजय ने ठहाका लगाया। अवनी अब मस्ती के मूड में आ चुकी थी। उसने अपने उड़ते हुए बालों को दोनों हाथों से पकड़ा और विजय के चेहरे पर लपेट दिया।
" अरे पागल हो गई है क्या अनु ? " विजय ने एक हाथ से आंखों पर आ रहे अवनी के बालों को हटाते हुए कहा।
" हां ! हां ! हां ! पागल हो गई हूं तेरे इश्क में ! " अवनी ने विजय के कान के पास रोमांटिक अंदाज में चिल्लाकर कहा।
अवनी ने विजय के पेट में गुदगुदी करना शुरू कर दिया।
विजय जोर से हंसते हुए कसमसाया। विजय ने ब्रेक लगाया और इस कारण बाइक स्लिप हो गई। दोनों सड़क के किनारे गिरे। खैरियत थी कि वहां कच्ची मिट्टी थी, इस वजह से उन्हें ज्यादा चोट नहीं आई।
विजय गिरने के बाद तेजी से उठा और अवनी की तरफ़ भागा। अवनी जमीन पर पीठ के बल लेटी हुई थी। उसकी आंखें बंद थी, वो हिल डुल नहीं रही थी।
विजय ने अवनी के सिर के नीचे हाथ लगाकर उसका सिर ऊपर उठाया और दूसरे हाथ से गाल थपथपाने लगा।
" अनु ? अनु ? तू ठीक है ? " विजय ने बेचैन स्वर में पूंछा।
अवनी ने कोई जवाब नहीं दिया। विजय तड़प उठा।
" अनु ? कुछ बोल ? तू ठीक है ना ? आंखें खोल ! " विजय परेशान हो उठा और घबराहट में इधर उधर मदद के लिए देखने लगा। फिर वापिस अवनी की तरफ़ देखा।
अवनी ने धीरे से एक आंख खोली और मुस्कुराई। विजय के चेहरे पर सुकून के भाव आए।
अवनी ने दोनों आंखें खोली और खिलखिलाकर हंसने लगी। उसने अपने ऊपर झुके विजय के गले में दोनों हाथ लपेटे और हंसते हुए उससे लिपट गई।
विजय ने उसे गुस्से से अलग किया और मुंह फेरकर बैठ गया। अवनी फिर से उसके ऊपर झूल गई।
" चुड़ैल ! तूने मुझे डरा दिया था। " विजय ने प्यार भरी गाली देते हुए कहा।
" चिंता मत कर ! मैं इतनी आसानी से तेरा पीछा नहीं छोड़ूंगी कमीने। " अवनी ने हंसते हुए उसी तरह प्यारी सी गाली देते हुए जवाब दिया।
दोनों ठहाके लगाकर हंसने लगे। बहुत देर तक इसी तरह जमीन पर बैठे दोनों हंसते रहे।
विजय सामान्य हाईट का बाइस साल का फिल्मी हीरो जैसा एक बेहद हैंडसम लड़का था। अवनी उन्नीस साल की तीखे नाक नक्श वाली, गोरी, शानदार फिगर वाली बेहद खूबसूरत लड़की थी। उसकी बड़ी बड़ी आंखें उसकी खूबसूरती में इज़ाफ़ा करती थी।
दोनों जयपुर के डिग्री कॉलेज में पढ़ते थे। अवनी डिग्री के सेकंड इयर में थी और विजय पोस्ट ग्रेजुएशन के प्रीवियस इयर में।
दोनों की पहली मुलाकात कॉलेज में ही छ: महीने पहले हुई थी।
**** दोनों की पहली मुलाकात कैसे हुई ? जानेंगे अगले भाग में ****