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गांव की शाम

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एक अरसे से वो कह रही है कि मैं तेरी ही तो हूँ, और सच तो ये है कि वो सिर्फ कहती ही तो है! 

प्रेम घर जाकर बाइक आंगन में खड़ी कर रहा होता है कि प्रेम की मां, जो प्रेम का इंतजार कर रही थी, उसे आता देख बाहर आ जाती है और पूछती है, "आज तुम देर से घर आ रहे हो, काम ज्यादा था क्या?"प्रेम: "हां मां।"

विषय:- गांव की शाम मेरे गांव की वह स्वर्णिम शाम , जो स्वर्णिम आभा लेकर आती है।धीरे-धीरे देते हुए भास्कर को विदाई,अंबर से अंधकारमय चादर बिछ जाती है।। खेतों से लौटते हुए हलधर , शहर से लोटते हुए ब


हमारी आरज़ू पीपल हमारे गाॅंव की 
गुजरती थी वहीं दोपह र सारे गाॅंव की

वही पे बैठ कर के खेलती थीं लड़कियां 
गुजरती रा

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