नई दिल्लीः कितने हैरानी की बात है। जिस बुराई के खिलाफ कोई शख्स दो दशक तक अंग्रेजों से लड़ता रहा, उसी बुराई की तोहमत उस पर भी मढ़ी जा रही। मुट्ठीभर लोगों के आंदोलन पर ही शांति और अहिंसा के इस पुजारी की मूर्ति को हटाने का भी फैसला कर लिया गया। दक्षिण अफ्रीका में रहकर दो दशक तक देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने रंगभेद के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी, मगर आज अफ्रीकी देश में ही उन पर सवाल उठने शुरू हो गए। जोहांसबर्ग से शुरू हुई विरोध की बीमारी पश्चमी अफ्रीकी देश घाना के विश्वविद्यालय तक पहुंच गई। एक महीने के जबर्दस्त विरोध के चलते घाना विश्विद्यालय के कैंपस से गांधी की प्रतिमा हटाने पर फैसला हुआ है। इससे पहले 2013 में भी जोहांसबर्ग में गांधी पर नस्लवादी होने का मुद्दा गरमाया था। तब गांधी चौराहे से उनकी मूर्ति हटाने की मांग उठी थी। दोनों देशों के बीच संबंधों पर कहीं मूर्ति विवाद असर न डाल दे, इसके लिए घाना के विदेश मंत्रालय ने विरोध करने वालों को समझाने की कोशिश की मगर सफलता नहीं मिली। कहा जा रहा है कि मूर्ति को कहीं दूसरी जगह स्थापित किया जाएगा।
1250 लोगों ने किए हस्ताक्षर
दरअसल विश्वविद्यालय में लगी गांधी प्रतिमा हटाने के लिए 12 सितंबर को ऑनलाइन याचिका कुछ प्रोफेसर्स ने दाखिल की थी। इसकी शुरुआत ओब्देल कम्बॉन ने की थी। इस याचिका पर कुल 1250 लोगों ने हस्ताक्षर किए। जिसके बाद घाना विश्वविद्यालय ने इस मूर्ति को हटाने का फैसला कर लिया है। ताकि विवाद थम सके। घाना के विदेश मंत्रालय ने भी मूर्ति हटाए जाने की पुष्टि कर दी है। गौरतलब है कि महात्मा गांधी 1893 में दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजों से भारतीयों के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने गए थे। वहां रंगभेद की समस्या गहरी देख उसके निदान के लिए दो दशक तक टिक गए। सत्य और अहिंसा के प्रति अपनी गहरी आस्था के चलते गांधी दक्षिण अफ्रीका में गांधी काफी लोकप्रिय हुए थे।
गांधी को बताया जातिवादी और नस्लवादी
विरोध करने वाले घाना के प्रोफेसर और छात्र ने याचिका में गांधी को भारतीय जाति व्यवस्था का समर्थक बताया। अपने दावे के समर्थन में महात्मा गांधी के 1894 के एक खुले पत्र का हवाला दिया, जो नेटाल मरकरी नाम के अखबार में प्रकाशित हुआ। इसके मुताबकि महात्मा गांधी भारतीयों को अश्वेत अफ्रीकियों की तुलना में बेहतर मानते थे। यही नहीं उन्होंने अश्वेत अफ्रीकियों के लिए काफिर शब्द का इस्तेमाल किया।
प्रोफेसर्स का कहना है कि विश्वविद्यालय कैंपस में गांधी की मूर्ति रहने से छात्रों में गलत संदेश जाएगा।
राष्ट्रपति मुखर्जी ने दौरे पर मूर्ति का किया था अनावरण
जब बीते जून को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी घाना दौरे पर गए तो उनसे घाना विश्वविद्यालय की कैंपस में महात्मा गांधी के सम्मान में इस मूर्ति का अनावरण कराया गया था। मगर अब विवादों के कारण तीन महीने बाद ही यह मूर्ति अपने मूल स्थान से हटने जा रही है। कहा जा रहा है कि गांधी समर्थक बुरा न मानें इस नाते इस मूर्ति को कहीं दूसरे स्थान पर स्थापित किया जा सकता है।
बाहरी व्यक्ति की मूर्ति बर्दाश्त नहीं
घाना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर्स का कहना है कि कैंपस में बाहर के किसी व्यक्ति की मूर्ति नहीं लगेगी। जो मूल रूप से घाना के हैं, न कि किसी देश के, उन्हीं की मूर्ति लगेगी। प्रोफेसर्स ने घाना के पहले राष्ट्रपति नुरुमाह की मूर्ति लगाए जाने की वकालत की। उधर छात्रों का कहना था कि घाना में कई हीरोज है जो हमारी आजादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। तो फिर कैंपस में गांधी की मूर्ति को लगाने का कोई मतलब ही नहीं है।