हरिद्वार : जिस गंगा के नाम पर साल 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा गया वह क्या साल 2019 के चुनाव तक सुरक्षित रह भी पायेगी यह बड़ा सवाल है। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से ही सत्ता में जो भी पार्टी आयी उसने अपने चाहने वालों को खुश करने के लिए गंगा को लूटने की अनुमति दे दी। खनन का कारोबार आज उत्तराखंड में सबसे बड़ा कारोबार बनकर उभरा है। तमाम प्राकृतिक आपदाओं के बावजूद उत्तराखंड और केंद्र की सरकारों द्वारा उत्तराखंड की नदियों पर खनन और डैम बनाने जैसे कमाऊ धंधे बंद नही किये।
उत्तराखंड सरकार को खनन माफियाओं की बड़ी चिंता
इसी साल केंद्र सरकार ने उत्तराखंड सरकार की बात मानते हुए खनन को अनुमति दे दी। जिसका उत्तराखंड के तमाम पर्यावरणीय संगठन विरोध कर रहे हैं। हरिद्वार में गंगा को बचाने के लिए कई समय से प्रयासरत 'मातृसदन आश्रम' के परमाध्यक्ष स्वामी दयानंद का कहना है कि उत्तराखंड सरकार ने हरिद्वार सहित अन्य इलाकों में खनन को मंजूरी देने के लिए जो सिफारिशें केंद्र सरकार को भेजी हैं वह पूरी तरह बेबुनियाद और सरासर झूठ हैं।
उन्होंने सवाल उठाये कि राज्य सरकार ने जिस एफआरआई देहरादून की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र से गंगा में खनन की अनुमति मांगी है वह रिपोर्ट को एफआरआई ने एनजीटी को देने से इनकार कर दिया था। गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने भी यह आदेश दिया था कि हरिद्वार में बिना पर्यावरणीय आंकलन के खनन को मंजूरी न दिया जाए लेकिन इन सबके विपरीत खनन के पट्टे खोल दिए गए।
FRI के वै ज्ञान िक आंकलन पर राज्य सरकार ने खर्च 17 लाख रूपये
साल 2015 में खनन को लेकर वन मंत्री दिनेश अग्रवाल ने एफआरआई देहरादून को पर्यावरणीय आंकलन के लिए कहा था। जिस पर 16 लख 80 हजार रूपये भी खर्च हुए थे और इसका खुलासा आरटीआई से हुआ। राज्य सरकार ने इसी ड्राफ्ट को केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय को भेजा, जिसके आधार पर केंद्र सरकार ने खनन को मंजूरी दी इसके बाद हरिद्वार निवासी विजय वर्मा ने एनजीटी में याचिका दायर की थी। एनजीटी ने जब एफआरआई से जवाब मांगा तो उसने फ़ाइनल रिपोर्ट देने से इनकार कर दिया।
खनन के लिए राज्य सरकार की सिफारिश में गलत तर्क
उत्तराखण्ड में खनन को समझने के लिए उत्तराखंड की नदियों की स्थित को समझना बेहद आवश्यक है। उत्तराखंड में नदियां पहाड़ों से होकर जब मैदानी भागों की तरफ आती है तो अपने साथ बड़ी मात्रा में पत्थर और मिटटी लाती है। उत्तराखंड में देवप्रयाग संगम से गंगा नदी बनती है और वह ऋषिकेश तक पहुँचते पहुँचते अपने साथ लाये गए कंकड़ पत्थरों को स्थापित कर लेती है। यानी हरिद्वार तक गंगा के पहुँचते-पहुंचे इसकी संख्या बेहद कम हो जाती है। हरिद्वार में गंगा की तलहटी में मौजूद पत्थरों को खनन से पूरी तरह साफ़ हो चुका है। उत्तराखण्ड में इन्ही पत्थरों की उपयोगिता रेट से लेकर कंक्रीट तक के लिए की जाती है।
उत्तराखंड सरकार ने केंद्र को भेजे अपने पत्र में तर्क दिया कि हरिद्वार में खनन को इसलिए मंजूरी दे दी जाए क्योंकि नदी के तल पर इससे कोई फर्क नही पड़ेगा। राज्य सरकार का कहना था कि खनन के द्वारा नदी की तलहटी से जिस रेत और पत्थरों को उठाया जायेगा उसे नदी बरसात में फिर भर देगी।
स्वामी दयानंद का कहना है कि राज्य सरकार के इस तथ्य को भू- वैज्ञानिक तरीके से भी गलत साबित किया जा चुका है।
हरिद्वार में खनन के करोड़ों के कारोबार में नेताओं की सत्ता
हरिद्वार में गंगा में खनन का कारोबार तो उसी वक़्त से नेताओं की मोटी कमाई करता रहा है जब उत्तराखंड, यूपी का हिस्सा था। 1996 में तत्कलीन सरकार ने गंगा में खनन का ठेका शराब कारोबारी पोंटी चड्ढा को दे दिया और आज उत्तराखंड बनने के बाद सत्ताधारी पार्टियों का कब्ज़ा खनन पर जारी है। इसी 20 अक्टूबर को हरिद्वार के भोगपुर क्षेत्र में खनन की कई मशीने जब्त की गई। इससे पहले अवैध खनन में कांग्रेस के एक नामी नेता का नाम भी आ चुका है। ..... जारी है