रांची: आप ने अब तक अलग-अलग गांव के बारे में सुना होगा. कहीं सिर्फ आईएएस तो किसी गांव में सिर्फ पीसीएस, किसी गांव में सेना के जवान तो किसी गांव में इंजीनियर. लेकिन क्या आप ने कभी सुना है कि किसी गांव में सिर्फ दामाद रहते हों. जमशेदपुर के आदित्यपुर में एक ऐसा गांव हैं जहां के ज्यादातर रहने वाले वहां के दामाद हैं.
कैसे बना दामाद का गांव
लोगों की माने तो 60 के दशक में जब आदित्यपुर औध्योगिक क्षेत्र का निर्माण हुआ तो वहां के फैक्ट्रियों में काम करने के लिए लोगों की जरूरत पड़ी. उस वक्त आदित्यपुर के लोगों ने अपने दामाद को बुलाकर वहां नौकरी लगवा दी. क्योंकि ज्यादातर लोगों के दामाद पहले खेती किया करते थे इसलिए वो लोग भी पलायन करके नौकरी करने के लिए आ गए. फिर धीरे-धीरे लोगों ने अपने दामाद को पास ही पड़े खाली खेतों में जमीन दिलवाकर घर भी बनवा दिया. देखते ही देखते बनजर पड़े खेतों में एक पूरी बस्ती खड़ी हो गई. बाद में जब लोगों ने ध्यान दिया तो वहां वहां रहने वाले लगभग सभी लोग आदित्यपुर के दामाद थे. इसलिए लोगों ने इस गांव का नाम जमाई पाड़ा रख दिया.
जमाई पाड़ा क्यों पड़ा नाम
दरअसल उड़िसा में दामाद को जमाई कहा जाता है और स्थान को पाड़ा. इसलिए लोगों ने दामाद वाले इस गांव को जमाई पाड़ा कहना शुरु कर दिया. जिसके बाद इसका नाम ही जमाई पाड़ा हो गया. जमाई पाड़ा में लगभग 50 घर हैं. यहां करीब 400 लोग रहते हैं. अब तो कई जमाई नाती-पोता वाले हो गए हैं.