नई दिल्ली: राजस्थान में गायों के नाम पर एक बड़ा घोटाला सामने आया है। इस घोटाले का खुलासा कैग रिपोर्ट में हुआ है। नगर निगम की हिंगोनिया गौशाला में गायों के चारे के नाम पर अधिकारी अपनी जेबें भरते रहे। ये घोटाला जून 2013 से 25 जुलाई 2013 के बीच हुआ। इस दौरान निगम अधिकारियों ने करीब 34 लाख रुपए का घोटाला किया।
सीएजी ने रिपोर्ट में बताया है कि गौशाला में चारे की सप्लाई के लिए नगर निगम ने नवम्बर 2011 में टेडर निकाला था, जिसमें सात कंपनियों ने हिस्सा लिया। इसमें मैसर्स रवि सर्विस को टेंडर मिला। सबसे कम दर (खाखला 497 और कुट्टी 595 रुपए प्रति क्विंटल) मैसर्स रवि सर्विस ने दी। इस दर पर अन्य 6 कंपनियों ने चारा सप्लाई करने से मना कर दिया, जिसके बाद उनकी अमानता राशि लौटा दी गई. टेंडर प्रक्रिया होने के बाद निगम प्रशासन ने मैसर्स रवि सर्विस को 7 फरवरी 2012 से 6 फरवरी 2013 तक चारा आपूर्ति के आदेश दिए और इस अवधि में करीब 2.90 करोड़ रुपए के चारे की खरीद की गई।
इसी बीच वर्ष 2012-13 की अवधि में ही निगम अधिकारियों ने टेंडर में आई एक और फर्म मैसर्स दीपेन्द्र सैनी से भी करार कर लिया। करार में इसी दर पर चारा आपूर्ति करवाई, लेकिन जब 7 फरवरी 2013 को अवधि पूरी हुई तो निगम अधिकारियों ने मैसर्स दीपेन्द्र सैनी से सहमति प्राप्त किए बिना अनुबंद को मई 2013 तक बढ़ा लिया, लेकिन फर्म ने पुरानी दर पर 25 अप्रैल तक ही चारा आपूर्ति की। उसके बाद 26 अप्रैल आपूर्ति बंद कर दी और खाखला की दरें 735 रुपए प्रति क्विंटल मांगी। अब चारे की दरें बढ़ाने के कारण चारा आपूर्ति रुक गई। इस पर निगम प्रशासन ने खाखला की बाजार दरों का मूल्यांकन करने के लिए 17 जून 2013 को एक कमेटी का गठन किया।
कमेटी की रिपोर्ट आने का इंतजार किए बिना ही निगम ने चारा की खरीद कर ली। एक जून 2013 से 25 जुलाई 2013 तक 14,476 क्विंटल चारा खरीदा गया, जबकि समिति ने अपनी रिपोर्ट जनवरी 2014 में पेश की, जिसमें खाखला की प्रचलित बाजार दर 730 रुपए प्रति क्विंटल की सिफारिश की थी। समिति की इस सिफारिश पर निगम प्रशासन ने फर्म को 730 रुपए के हिसाब से 1.06 करोड़ रुपए का भुगतान सितम्बर 2014 में कर दिया। इस तरह निगम प्रशासन ने 233 रुपए प्रति क्विंटल की अधिक दर से करीब 34 लाख रुपए का अतिरिक्त भुगतान कर दिया।
इस पूरे घटना में निगम अधिकारियों की अनियमितता सामने आ रही है। न तो नगर निगम प्रशासन ने समय रहते नई निविदा जारी की और न ही पहली फर्म से अनुबंद बढ़ाने पर कोई विचार किया। दूसरी फर्म से जो अनुबंद किया वह भी नियम विरूद्ध जाकर किया।