मन के किसी कोने में छिपे भावों के मोती कभी कविता,कभी गजल का रूप ले लेते हैं। उन्हें दिल की किताब से बाहर ला पन्नों पर उकेरने का प्रयास करती हूँ। कभी ये भाव सामाजिक कभी अपने आप से प्रशन करते नजर आते हैं।कम शब्दों में बहुत कुछ कहता काव्य ! मन के किसी क
यहा हम ग़ज़ल कहेंगे, चूक भी गए जो नियम बंधन से, महबूबसे बात,तो भी करेगे।। =/= पूछते है,वो ये ग़ज़ल क्या है, महबूब से बात का इक जरिया है।। =/= संदीप शर्मा।।