भारत दुर्दशा भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा सन 1875 ई में रचित एक हिन्दी नाटक है। इसमें भारतेन्दु ने प्रतीकों के माध्यम से भारत की तत्कालीन स्थिति का चित्रण किया है। वे भारतवासियों से भारत की दुर्दशा पर रोने और फिर इस दुर्दशा का अन्त करने का प्रयास करन
मुंशी प्रेमचंद भारत के उपन्यास सम्राट माने जाते हैं | जिनके युग का विस्तार सन 1800 से 1936 तक है यह कालखंड भारत के इतिहास में बहुत महत्व का है इस युग में भारत का स्वतंत्रता संग्राम नई मंजिलों से गुजरा प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था |
मन मंथन (दैनंदिनी) जुलाई पुस्तक मेरे रोज की दिनचर्या में घटित घटनाओं को लिखने का प्रयास है।
मेरा सपना कब सच होगा मुरादी लाल रोज यही सोच पर रहता,,, हर दिन वो लोग और आसपास अपने दोस्त से रहती मै नेता बनूंगा और लोगो की हर समस्या, सुविधा, लोगो को काम दूंगा ।।। आखिर वह दिन आ गया,,, पंचायत मुखिया का चुनाव होने वाला था उसने भी नामकंन भर दिया,,,,
Bewafa shayari Love in this romantic shayari Is best to day ejhhar ka intezar shayari
अप्रैल माह में अपने लम्हों को और अहसासों को शब्दों में पिरोकर अपनी डायरी में लिख रहीं हूँ...।
मेरी और मेरी सखी दैनंदिनी की बात सावन की रिमझिम फुहारों के साथ
नमस्कार मिनल, कांदा भजी पाककृती माझ्या आजीने शिकवलेली खालील प्रमाणे साहित्य : दोन मोठे कांदे उभे चिरलेले. दोन हिरव्या मिरच्या बारीक चिरलेल्या थोडासा ओवा मिठ चिमुटभर हळद तळण्यासाठी गोडेतेल ( refined oil) बेसन कृती: एका खोलगट वाडग्यात उभे चि
हमे अपने जीवन को सफल और प्रभावशाली बनाना है। हमारे जीवन में दुःख और सुख आना स्वाभाविक है , अगर ये नही आते तो हमे कैसे पता चलाता कि कौन अपना है और कौन नही। बस इतना ही नहीं ये हमारी क्षमता का पहचान भी करता है, जिससे हम उससे परे हो सकते हैं l इसलिए हम
स्कूल की दर्द भरा प्यार की कहानी जो एक लड़का एक लड़की से करता था
Windows7 का परिचय:
हर रोज होनेवाली हर आम और खास घटनाओं को विवरण मेरे डायरी में आपको पढने को मिलेगा, थोडे आसूं, थोडे खुशी से सजे पन्ने पढने को मिलेगें ! थोडी मेरी कहानी, थोडी आसपास बितते लम्हें मिलने आऐंगे !
रोज अलग व्हारायटी की सब्जी थोडा हसीए!!🤣🤣 ©पूनम पिंगळे सुजाता को रोज खाना बनाना अच्छा नही लगता था .. एक नंबर की कामचोर थी वह..वो रोज अपने बेटे को आलू की सब्जी बनाकर देती थी ..बेचारा ऋषि बाकी बच्चो की अलग अलग सब्जियां देखकर ललचा जाता था.. वो खुदक
उन्होंने कई नाटक, रोजमर्रा की जिंदगी का चित्रण, और सफरनामे लिखे। लेकिन, हरिश्चंद्र की सबसे उल्लेखनीय रचनाएँ आम लोगों की परेशानियों, गरीबी, शोषण, मध्यम वर्ग की अशांति को संबोधित करती हैं, और राष्ट्रीय प्रगति के लिए आग्रह करती हैं। अपने जीवनकाल में, ह
इस दरगाह से सभी धर्मों के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। इसे सर्वधर्म सद्भाव की अदभुत मिसाल भी माना जाता है। ख्वाजा साहब की दरगाह में हर मजहब के लोग अपना मत्था टेकने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी ख्वाजा के दर पर आता है कभी भी खाली हाथ नहीं लौटता है,
यह कहानी है दो दोस्तों की जो अपने अतीत के सामने एक बार फिर आकर खड़े हैं और अपनी भावनाओं के वश मे कुछ इस कदर हैं की जिसका अंजाम केवल अंत था।
राष्ट्रकवि दिनकर के इस 'वेणुवन' में लेख भी हैं, निबन्ध भी और काल्पनिक संवाद भी। यह चिन्तन-मनन के अभयारण्य की तरह है जिसका आकर्षण और प्रभाव अन्त तक बना रहता है। इसमें शामिल हर पाठ अपने रंग में रँगने की क्षमता रखता है। 'अर्धनारीश्वर' में दिनकर नर-नारी
सखी की सखी से बात ,इन त्योहारों का साथ ,मन के जज्बात क्या बात, क्या बात , क्या बात । अब के माह कुछ विशेष है सखी बताएं गे समय पर।
( सामान्य सा एक हाट की गहमा गहमी है। एक पंडित जी और एक क्षत्री एक साथ तकरार की मुद्रा में एक साथ उलझतेहुए दिखते है।) क्षत्री : महाराज देखिये बड़ा अंधेर हो गया कि ब्राह्मणों ने यह व्यवस्था दे दी है कि अब कायस्थ भी क्षत्री हैं। कहिए अब कैसे कैसे राज का
यह एक बहुत ही दर्द भरी प्रेम कहानी है जो कि एक स्कूल लव स्टोरी है इसे पढ़ने के बाद आपकी आंखो में आंसु आ जाएगा