"दोहा गीतिका"
मुट्ठी भर चावल सखी, कर दे जाकर दान
गंगा घाट प्रयाग में, कर ले पावन स्नान
सुमन भाव पुष्पित करो, माँ गंगा के तीर
संगम की डुबकी मिले, मिलते संत सुजान।।
पंडित पंडा हर घड़ी, रहते हैं तैयार
हरिकीर्तन हर पल श्रवण, हरि चर्चा चित ध्यान।।
कष्ट अनेकों भूलकर, पहुँचें भक्त अपार
बैसाखी की क्या कहें, बुढ़ऊ जस हनुमान।।
कहीं काँवरी में पिता, कहीं पीठ पर लाल
दिख जाते हैं सुलभ ही, रिश्ते बहुत महान।।
सुबह गंग जयघोष प्रिय, शाम आरती थाल
जगमग होती रात है, दिन डुबकी परिधान।।
गौतम मन मंशा खिली, अति सुंदर माँ धाम
गंगा यमुना सरस्वती, दुर्लभ मातु मिलान।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी