shabd-logo

गीतिका

hindi articles, stories and books related to Gitika


गीतिका आधार छंद- शक्ति , मापनी 122 122 122 12, समांत-ओगे, पदांत- नहीं “गीतिका”बनाया सजाया कहोगे नहीं गले से लगाया सुनोगे नहीं सुना यह गली अब पराई नहीं बुलाकर बिठाया हँसोगे नहीं॥बनाकर बिगाड़े घरौंदे बहुत महल यह सजाकर फिरोगे नहीं॥बसाये न जाते शहर में शहर नगर आज फिर से घुमोगे नहीं॥चलो शाम आई सुहानी बहु

मापनी- 2122 2122 , पदांत- पाना,समांत- जीत, ईत स्वर“गीतिका”प्यार खोना मीतपाना युद्ध को हर जीतपाना हो सका संभव नहींजग पार कर हद हीतपाना॥दिल कभी भी छल करेक्या प्रीत पावन चीतपाना॥ (चित्त)जिंदगी कड़वी दवा हैस्वाद मिर्चा तीतपाना॥ (तीखा) राग वीणा की मधुरहै तार जुड़ संगीतपाना॥दो किनारों की नदीबन क्यों भला ज

पदांत- नहीं, समांत-अहरी,मापनी-2122 2122 2122 12“गीतिका” आप के दरबार में आशांति ठहरी नहीं दिख रहा है ढंग कापल प्रखर प्रहरी नहींझूलती हैं देख कैसेद्वार तेरे मकड़ियाँ रोशनी आने न देतीझिल्लियाँ गहरी नहीं॥ वो रहा फ़ानूष लटकाझूलता बे-बंद का लग रहा शृंगार सेभी रेशमा लहरी नहीं॥गुंबजों का रंगउतरा जा रहा बरसात

मापनी-२१२२ २१२२ २१२२ २१२ समांत- ओल पदांत- दूँ“गीतिका” हो इजाज़त आप की तो दिल कि बातें बोल दूँ बंद हैं कमरे अभी भी खिड़कियों को खोल दूँ उस हवा से जा कहूँ फिर रुख इधर करना कभी दूर करना घुटन मंशा जगह दिल अनमोल दूँ॥ खिल गई है रातरानी महक लेकर बाग की हर दिशा गुलजार करती रंग महफि

“देशज गीतिका” सैयां हमार कोतवाली में धरा गइले प्रेम पति दलाली में चौमुख चरचा भइल कोतवाल के सिप्पा लगवले बहाली मेंथाना पुलिस न राखे उधारी सम्मन पकड़ि गइलें ससुरारीपहिली अपील पर खुलल किवाड़ी चौका पुरवले दिवाली में॥पकल पकौड़ी भुलाइल अँगना धन्नो धाक दबाइल सजना कुर्सी के फुर्ती प

मापनी- १२२२ १२२२ १२२२“गीतिका”पुकारे गोपियाँ कान्हा मुरारी हो नचाते अब कहाँ ग्वाला मदारी हो बजाते किस गली बंसी रसीली तुम गिराते पर कहाँ दहिया अनारी हो॥ गए वो दिन विरानी हो गई रतिया चराते तुम कहाँ गैया पुरारी हो॥ मिले गोकुल गली में भर दिये खुशियाँ निभाने को कभी आना कछारी हो

“गीतिका”खुलकर नाचो गाओ सइयाँ, मिली खुशाली है अपने मन की तान लगाओ, खिली दिवाली है दीपक दीपक प्यार जताना, लौ बुझे न बातीचाहत का परिवार पुराना, खुली पवाली है॥कहीं कहीं बरसात हो रही, सकरे आँगन मेंहँसकर मिलना जुलना जीवन, कहाँ दलाली है॥होना नहीं निराश आस से, सुंदर अपना घर नीम छ

आधार छंद- लावणी (मापनीमुक्त) विधान- 30 मात्रा 1614 पर यति अंत में वाचिक गुरु। समांत - आता पदांत- है "गीतिका" चलो दशहरा पर्व मनाए, प्रति वर्ष यह आता है दे जाता है नई उमंगे, रावण को मरवाता है हम भी मेले में खो जाएँ, तकते हुए दशानन को आग लगा

गीतिका आधार छंद- मंगलवत्थू (मापनीमुक्त), विधान- २२ मात्रा, ११,११ पर यति, मध्य यति से पूर्व और पश्चात त्रिकल, ये त्रिकल क्रमशः गाल और लगा हों तो सर्वोत्तम, समांत - आस, पदांत – रहे "गीतिका" आया शुभ त्योहार, दशहरा खास रहेकटकुटिया की रात,

गीतिका, आधार : वर्णिक छंद तोटक, समांत : आर, पदांत : धरो, मापनी : 112 112 112 112 [4 सगण ]=16 मात्रा अंत लयात्मक तुकान्त....... "गीतिका" मृदुता नहिं तापर खार धरो ममता नहिं वा पर प्यार धरो मन मान तरो यह बात बड़ी मरजाद लिए घर द्वार धरो।। समता अपनी तनि देखि चलो क्षमता रख ताड़ पहार धरो।। रखना नहिं भा

गीतिका , छंद- रोला, मात्रा भार- 11, 13 (विषम चरण तुकांत 1 2, सम चरण का अंत 1 2, समांत- अना, अपदांत.."गीतिका" खुले गगन आकाश, परिंदों सा तुम उड़ना जब तक मिले प्रकाश, हौसला आगे बढ़ना भूल न जाना तात, रात भी होती पथ पर तक लेना औकात, तभी तुम ऊपर चढ़ना।। सहज सुगम अंजान, विकल

छंद मापनी- १२२२ १२२२ १२२२ १२२२...... ॐ जय माँ शारदे.......!“गीतिका”उठा कर गिन रहे टुकड़े जिसे तुमने गिराया है तुम्ही जिसमें ललक तकते रहे किसने डराया है छिटककर अब पड़ें है जो नुकीले हो गए कतरे किसी दिन उठ गए चरचे लिपट सबने पिराया है॥ धरो मत अब नया इल्जाम तुम दीवार बनाने कारग

समांत- आन, पदांत- आँखों में, मात्रा भार- २८ यति- १४ पर “गीतिका”उठाकर चल दिये सपने, बड़े अरमान आँखों मेंठिठककर पग बढ़े आगे, डगर अंजान आँखों मेंदिखी मूरत तुम्हारी तो, न मन विश्वास रख पायामिरे तो बोझिल हैं कंधे. कहाँ दिनमान आँखों में॥खिली है चाँदनी पथ पर, उगी सूरत विराने नभ डर

गीतिका, समांत- आन पदांत- देखे है, मात्रा भार- २६“गीतिका”उड़ता ही रहा ऊपर सदा अरमान देखे हैं बहता रहा पानी झुका आसमान देखे हैं मिले पाँव कीचड़ तो बचा करके निकल जाते उड़ छींटे भी रुक जाते मजहब मान देखे हैं॥घिरती रही आ मैल जमी फूल की क्यारी छवियाँ बिना दरपन बहुत छविमान देखे हैं

मापनी- ११११ २२२२ २२१२समांत- ओरी, पदांत- सखी “गीतिका”उपवन में राधिका गोरी सखी सुधबुध खो कान्हा होरी सखीजिनमन मुरली बड़ी प्यारी हुई मधुबन में नाचती भोरी सखी॥चितवन तुम भी तिन्ह झाँकी झरो सखियन में मालती मोरी सखी॥अब तुम से की कहूँ गति आपनी बिरहन जिय बाँधती डोरी सखी॥लखत ठगी

मात्र भार-24, समांत-आ, पदांत- दिया.......“गीतिका” तुमने वो चाँद मेरा क्यूकर चुरा दिया मुंडेर घिर गई बदरी पानी फिरा दिया हसरत मेरे मन की लपक जान तो लेते बिगड़े बेअदब तुम क्यूँ परदा गिरा दिया॥ अमावस की रात कैसे हो गई तू काली दुइज़ की बाँह पकड़ी पूनम थिरा दिया॥ बहुतों को मने देखा मगर

कैसे मुकर जाओगे+++ *** +++यंहा के तो तुम बादशाह हो बड़े शान से गुजर जाओगे ।ये तो बताओ खुदा कि अदालत में कैसे मुकर जाओगे !! चार दिन की जिंदगानी है मन माफिक गुजार लो प्यारे।आयेगा वक्त ऐसा भी खुद की ही न

वो हमारे सर काटते रहेहम उन्हें बस डांटते रहे !!वो पत्थरो से मारते रहेहम उन्हें रेवड़ी बाटते रहे !!लालो की जान जाती रहीहम खुद को ही ठाटते रहे !!माँ बहने बिलखती रहीनेता जी गांठे साँठते रहे !!जान हमारी निकलती रहीहम धैर्य को अपने डाटते रहे !! राजनीति का खेल

गीतिका, समांत- तुमको, पदांत- मुबारक हो, मात्र भार- 28......सितारों से सजी रौनक सनम तुमको मुबारक हो बना हमराज यह सेहरा सजन तुमको मुबारक हो उठा कर देख लो अब तो निगाहों से नजारों को अटल विश्वास हो जाए बहम तुमको मुबारक हो॥ गिराकर चल दिये चिलमन पकड़कर डोर हाथों से

“गीतिका” सुना है सुरत ए गैर भी अपनों के जैसी ही भली लगती है फर्क सिर्फ इतना ही है कि वह बिना नाकाब लगाए चलती है तादात गैरों की कभी कम नहीं हुई अपनों के बूते रहकर लटके दिखते हैं बहुतेरे चेहरे जहाँ बारात निकलती है॥ अहमीयत कहती है भीड़ में अकेला कम नहीं

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए