समान्त- अना, पदांत- नहीं चाहता
"गीतिका"
छाप कर किताब को बाँधना नहीं चाहता
जीत कर खुद आप से हारना नहीं चाहता
रोक कर आँसू विकल पलकों के भीतर
जानकर गुमनाम को पालना नहीं चाहता।।
भाव को लिखता रहा द्वंद से लड़ता रहा
छंद के विधिमान को बाँटना नहीं चाहता।।
मुक्त हो जाना कहाँ मंजिलों को छोड़ पाना
लौटकर संताप को छाँटना नहीं चाहता।।
सृजन के मैदान में कलम बेसुमार हैं
ज्ञान से इंसान को मारना नहीं चाहता।।
तौल कर शब्दों को बेवजन करता नहीं
तर्क से इंसाफ़ को काटना नहीं चाहता।।
सोचना, गौतम बापू गांधी के विचार को
जिल्द से ईमान को ढांकना नहीं चाहता।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी