"दोहा गीतिका"
बहुत दिनों के बाद अब, हुई कलम से प्रीति
माँ शारद अनुनय करूँ, भर दे गागर गीत
स्वस्थ रहें सुर शब्द सब, स्वस्थ ताल त्यौहार
मातु भावना हो मधुर, पनपे मन मह नीति।।
कर्म फलित होता सदा, दे माते आशीष
कर्म धर्म से लिप्त हो, निकले नव संगीत।।
सुख-दुख दोनों हैं सगे, दोनों की गति एक
कष्ट न दे दुख अति गहन, सुख दे माँ बन मीत।।
प्यार मिला परिवार का, छाँह मिली चहुँ ओर
मित्र मिले हर मंच पर, दे कविता को जीत।।
माता मन में प्रेम है, मम कविता का सार
ऋतु अनुसार कलम चले, सम समाज प्रकृति।।
समय-समय की बात है, समय बहुत बलवान
गौतम समयाधीन है, दे सुख समय प्रतीति।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी