
पटना: महान गणतिज्ञ डॉ. नारायण सिंह की गिनती दुनिया के महान गणतिज्ञों में होती है. जिन्होने आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत E=MC2 को चुनौती दी थी. आज वह भारत में दर-दर की ठोकरें खाकर दो वक्त की रोटी नसीब नहीं हो रही है. आज उनका जन्म दिन है. तो इनके गांव में रक्तदान शिविर लगा हुआ है.
70 साल का 'पगला सा' आदमी अपने जवानी में 'वै ज्ञान िक जी' थे
पटना साइंस कॉलेज में पढ़ते हुए सिंह 1963 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में शोध के लिए गए. 1969 में उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में पीएचडी प्राप्त की. उनके शोध कार्य ने उन्हें भारत और विश्व में प्रसिद्ध कर दिया. अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद कुछ समय के लिए भारत आए, लेकिन जल्द ही वे फिर अमेरिका वापस चले गए . सिंह ने वाशिंगटन में गणित के प्रोफेसर के पद पर काम किया.
भारत लौट किया IIT कानपुर में प्रोफेसर के तौर नौकरी
1971 में सिंह भारत वापस लौट गए. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर और भारतीय सांख्यिकीय संस्थान, कोलकाता में काम किया. 1973 में उनका विवाह वंदना रानी के साथ हुआ. इस दौरान नारायण सिंह को 1974 में मानसिक दौरे आने लगे. इसके बाद उनका इलाज रांची के कांके ले जाकर पागल खाना में इलाज हुआ. फिर वे लम्बे समय के तक वे गायब हो गए और फिर एकाएक वे आरा में मिले. 1976 में वशिष्ठ नारायण को दिमागी बीमारी सिजोफ्रेनिया हो गई. जिससे इनकी जिंदगी में कई तरह की परेशानी आई.
अभी भी कमरे में किताब और दीवार पर कई फॉर्मूले लिखे हुए हैं.
बताया जाता है कि नासा में अपोलो की लांचिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए तो कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक था. बताते चलें कि अभी भी इनके कमरे किताबों से भरे पड़े हैं और दीवार पर गणित के कई फार्मूला लिखे हुए होते हैं। ये फिलहाल गुमनामी का जीवन जी रहे हैं.
गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं महान गणतिज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह
, दीवार पर लिखकर कई फॉर्मूले महान गणतिज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह



बिमार वैज्ञानिक