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हास्य व्यंग्य

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आज मैं पूरे बत्तीस साल का हो गया हूँ। साथ-ही- साथ एक अकलमंद और सयाना लौंडा भी। इसलिए आज मैं पूरे होशो-हवास में यह निर्णय ले रहा हूँ कि आज के बाद मैं किसी कुंवारी लड़की की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखूंग।

 नोट: यह लेखक की कल्पना मात्र  है।  अक्सर एक बिल्ली हमारे घर के आस पास घूमती रहती है, कभी वह खिड़की से दीवार को फांदती है, कभी बाउंड्री में बैठकर मूछे मटकाती नजर आती है, बस सुबह शाम म्या

चुटकुले बाज़ कवि जिन का मोलिक है कविता लेखन। हैं कहाँ उन पे कविसम्मेलन।। मसखरे बन गये महान कवि। बीकानेरी रहे न हाथरसी।। चुटकुले मंच पर सुनाने की। जिन को कला हंसाने की।।&n

वगैरह बड़ी ही आजज़ी से मेंने इक खातून से पूछा।जवानी ढल रही है और तुम हो आज तक तन्हा।।सितम्बर में सवा चालीस की तुम होने वाली हो।चमक हुस्नो जवानी की भी अब तुम खोने वाली हो।।मुहब्बत के अंधेरे का सवे

कुर्सी नहीं छोड़ूंगा सौ बार कसम खाई कुर्सी नहीं छोड़ूंगा। ताऊ कहे या ताई कुर्सी नहीं छोड़ूंगा। ।नेता हूं में तो भाई कुर्सी नहीं छोडूंगा।।सौ हेर फेर करके कुरसी मुझे मिली है। मुद्दत की को

 धुन : ऐ मेरे वतन के लोगो ज़रा आंख में भरलो पानी पैरोडी ये कुर्सी चिपकू नेता करें देश से बेईमानी। जो शहीद हुए थे उन की नहीं याद रही कुर्बानी।।लंदन पेरिस में पढ़ते, नेता अफसर के बच्

सखि, महान नेता सुभाष चंद्र बोस का नारा तो तुमने सुना ही होगा ना कि तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा । दरअसल नेताजी तब देश से गुहार कर रहे थे कि देश ऐसे लोग उन्हें दे जो इस देश की खातिर बलि

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