नोट: यह लेखक की कल्पना मात्र है।
अक्सर एक बिल्ली हमारे घर के आस पास घूमती रहती है, कभी वह खिड़की से दीवार को फांदती है, कभी बाउंड्री में बैठकर मूछे मटकाती नजर आती है, बस सुबह शाम म्याऊँ म्याऊँ की आवाज से सबको चौकन्ना कर देती। शुरू शुरू में तो उस पर ज्यादा ध्यान नही देता था।
एक दिन मैं सुबह सुबह बरामदे में बैठकर चाय पी रहा था तो वह बिल्ली आयी, जोर जोर से म्याऊँ म्याऊँ की आवाज लगा रही थी। मैंने कल्पना मात्र कि और सोचा कि मानो यह रही है कि तुम तो चाय की सोड़ मा रहे है निर्मोही,मुझे रात से दूध नसीब नहीं हुआ है, अपने चेहरे को पंजे से फेरते हुए मुझे कह रही कि ये देख मेरा मुँह कैसा सूख गया है, कम से कम दूध नही तो कटोरी पर चाय ही रख दे, एक दो बिस्कुट भी दे दे, भूख से मेरी आंते बाहर आ रही है। बस इसी कल्पना ने मेरे कदम अंदर की तरफ बढ़ा दिए। मैंने उसे अंदर से लाकर थोड़ी चाय दे देदी, बस उस दिन से बिल्ली से दोस्ती हो गई।
जब से वह बिल्ली मेरी दोस्त बनी तब से वह बिल्ली मेरी सारे मोहल्ले की राजदार बन गई, रोज सुबह मेरे यँहा सुबह का दूध पी जाती और दिन भर सारे मोहले के घर घर जाकर सबकी खबर मुझे शाम को सुनाती। बस शाम को उसकी चटपटी खबरों के लिए मैं भी उतावला रहता, उसके लिये एक कटोरी दूध अलग से रखकर रखता।
वह बिल्ली शाम को आती और मैं उससे कहता बोल खबरीलाल क्या है मोहल्ले के समाचार। म्याऊँ म्याऊँ करते हुए मुँह बनाकर कहती कि आपके सामने जो मोटी आंटी जी है, कल उनके यँहा दूध पिया लेकिन उसमे मलाई नाम की चीज नहीं, दूध में पानी मिला रखा था, फिर पड़ोस में छुटकी आंटी के यँहा गयी तो वँहा उन्होंने सारे दूध को बच्चो को पिला दिया, और खाली पतीला सिंक में डाल दिया। दूसरे तरफ गपोड़ी आंटी के गोदाम में चूहे के लिये घूसी तो देखा कि वँहा उन्होंने प्याज फैला रखा था, बस प्याज की बदबू से मेरा सरदर्द हो गया, चूहा भी हाथ नहीं लगा, उसके बाद मैं गली वाले अंकल की दुकान में गईं सोचा गर्मी हो रही है, कोलड्रिंक पी लेती हूँ, लेकिन वँहा टमाटर ठूस रखें थे, नम्बर एक के कंजूस हैं। मैंने कहा बस आज यही खबर है, वह कहती कि अब गर्मियों में ज्यादा चक्कर नही लगा पाती हूँ, आज का दूध दे दो मुझे कल फिर बताती हूँ, हां सुबह के लिये एक दो रस चाय के लिये रख देना, ताकि सारी दिन भर चुस्ती फुर्ती बनी रहे।
अगले सुबह वह बिल्ली म्याऊँ म्याऊँ करके मेरे बेडरूम की खिड़की के सामने बाउंड्री मे बैठकर कह रही होती कि उठ जा आलसी, देख धूप खिड़की से तेरे मुँह पर चमक रही है, सुबह जरा छत पर मेरे साथ घूम तो ले, मैं भी एक दो चक्कर तेरे साथ लगा लेती हूँ, कल मेरा बिल्ला कह रहा था कि अब तू मोटी हो गई है, चूहा खा खाकर। मैं बिल्ली मौसी की बक बक से उठ गया और दैनिक नित्य कर्म कर छत पर चला गया, बिल्ली मौसी वँहा पहले ही बाट जो रही थी, एक दो चक्कर लगाए, थोड़ा व्यायाम किया और नीचे आ गया, तब तक अर्धांगिनी भी उठ चुकी थी, बरामदे में आकर पहले पानी पिया अखबार पढ़ने लगा, मेरे साथ साथ बिल्ली मौसी के लिये भी कटोरी पर चाय और रस आ गए थे। इधर बिल्ली ने दूध पिया निकल गयी सैर सपाटे पर। मैं भी ऑफिस चला गया।
शाम को बिल्ली आ गयी, आज वह उदास लग रही थी, मैंने उसे पुचकारते हुए कहा कि मौसी क्या हुआ, आज मूड ऑफ है, लगता है आज कुछ हाथ नही लगा। बिल्ली मौसी ने मुँह बनाते हुए कहा कि अब शरीफो का जमाना नहीं है, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, हजारों का घोटाला करके कहते हैं कि बिल्ली सौ चूहे खाकर हज को चली। बिल्ली मौसी की बात मेरी समझ मे नही आ रही थी, मैंने कहा मौसी कोई निवान से मरा चूहा तो नहीँ खाया, आज दिमाग सठिया गया तुम्हारा।
बिल्ली मौसी ने गुस्से में दांत खिसियाये और कहा कि अरे लोग दूध ना दे , चूहे ना मारने दे पर कम से कम मुझ पर चोरी का झूठा आरोप तो न लगाए। अब मैं समझ गया कि आज मोहल्ले में कुछ गड़बड़ हो गया है।
मैंने मौसी को पुचकारते हुए को कहा कि अब मुझे तो बता ही दो बिल्ली मौसी, तेरी कसम किसी से कुछ नहीं कहूँगा। मौसी ने कहा कि आज जब सुबह मैं यँहा से दूसरी गली में गई तो कॉलेज पढ़ने वाली एक ड्रीम गर्ल अपनी सहेली को बड़े गर्व से कह रही थी कि आज मेरा पहले वाले बॉय फ्रेंड से ब्रेकअप हो गया, भोंदू को किसिंग तक करनी नही आती बाकी खाक करेगा, कसम से मैं शरम के मारे पूंछ भी नही हिला सकी।
मैंने बिल्ली मौसी को कहा कि ये तो आम बात है, लेकिन तुम नाराज किस बात पर थी। बातूनी बिल्ली मौसी ने म्याऊँ म्याऊँ करते हुए कहा कि उसके बाद जब मैं बड़ी वाली कोठी में गयी, वँहा पर शाम के समय वो अंकल जी जिनका मन भर से ज्यादा पेट बाहर निकला है, अपनी आलू जैसी पत्नी को रिश्वत के रुपये देते हुए कह रहे थे कि ठेकेदार ने धोखा दे दिया 5 लाख में बात हुई थी लेकिन उसने अभी 3 लाख ही दिए, कह रहा था कि हमारे पास तो 30 हजार ही बचेंगे, बाकि तो ऊपर तक पंहुचाने है, एक लाख तो मंत्री जी और बाकी आला अधिकारियों दे देना है।
इतना कहते ही उन्हें एक अधिकारी का फ़ोन आया तो कह रहा था कि मंत्री जी मिलना चाहते हैं, काफी ईमानदार आदमी हैं, इस पर अधिकारी ने कहा कि हाँ जानता हूँ सर, सौ सौ चूहे कहकर बिल्ली हज को चले, बड़ा ईमानदार है, कल ही परसेंट की बात कर रहे थे, कुछ देर तक उनमें ऐसी ही बात हो रही थी।
अब तुम ही बतावो की हम बिल्लीयो का चूहो को मारकर खाना तो हमारी प्रवृति है, लेकिन इनके जैसी घूसखोरी तो नहीं करती, चूहे भी अपनी मेहनत और सूझ बूझ से मारते है, फिर वह अधिकारी को कहने लगा कि अरे हम बिल्ली की तरह चोरी थोड़ा करते हैं, शेर की तरह शिकार करते हैं, अब बताओ मैंने कब की उनके यँहा दूध की चोरी, कसम खाकर कह रही हूँ, मेरा इंसानियत से विश्वास उठ गया है। आज बस सौगंध ले ली है कि कभी मोहल्ले में किसी के ताने सुनने नही जाऊँगी, बस तुम मनखी हो इसलिए तुम्हारे यँहा कुछ खाने पीने आ जाती हूँ, जिस दिन तुम लोगो ने भी दुत्कार दिया उस दिन से नाली के चूहे मारकर भूख मिटा दूंगी पर किसी के देहली में पूँछ हिलाकर म्याऊँ म्याऊँ नही करूंगी, अब देश के मुखिया ने भी आत्मनिर्भर होने के लिये कह दिया है, चाइनीज चूहे तक नही खाऊंगी।
बिल्ली मौसी की बात सुनकर मैं कुछ देर के लिये सकपका गया, तब तक पत्नी अंदर से चाऊंमीन बनाकर ले आई, हमने भी आत्मनिर्भर बनने की कसम खाई और किचन में जाकर दो प्याज लिए औऱ खुद ही रोटी बनाई, फिर चाय और प्याज की सब्जी खाकर घर के ताजी चीज की डंकार ली और फोन पर व्यस्त हो गए उधर धर्मपत्नी ने बिल्ली को दूध दिया वह दूध सपोड़कर म्याऊँ म्याऊँ करते हुए बरामदे में रखी कुर्सी के ऊपर सो गई।
©®@ हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।