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चालीसा पाठ २

22 जुलाई 2022

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सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा,
विकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप  धरि  असुर  संहारे,
रामचन्द्र   के   काज   संवारे।।

लाय संजीवन लखन जियाए,
श्री   रघुवीर  हरषी उर लाए।
रघुपति  किन्हीं  बहुत  बड़ाई,
तुम मम प्रिय भरत सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो यश गावैं,
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।
सन कादिक ब्रहादि मुनिसा,
नारद शारद सहित अहिसा।।

जम   कुबेर  दिगपाल जहां   ते,
कवि कोबिद कहि सके कहां ते।
तुम उपकार सुग्रीवहिं  कीन्हा,
राम  मिलाए  राजपद दीन्हा।।
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