नई दिल्लीः पहले थोड़ी दर्द भरी कहानी सुन लीजिए, इसके बाद पीडि़ता के भाई का लेटर पढ़िए। कहानी यूं है। बिहार के औरंगाबाद जिले का रफीगंज इलाका। इलाके में रजानगर मुहल्ले की नौवीं क्लास में पढ़ने वाली एक मासूम छात्रा थी। नाम था सलमा खातून। 14 बरस की इस छात्रा के दिल में भी आम लड़कियों की तरह बहुत सारे अरमान थे। मगर सपनों को मानों किसी की नजर लग गई। पड़ोस के युवक अजहर ने बुरी नजर सलमा पर गड़ा दी। जून में कोचिंग से सलमा लौट रही थी कि उसने छेड़खानी कर दी। आबरू पर हाथ डालने से गुस्साई छात्रा ने शोहदे को तमाचा जड़ सबक सिखाने की कोशिश की। इससे नाराज शोहदे ने दुस्साहस की हद पार करते हुए बाद में घर में घुसकर सलमा को तेजाब से नलहा दिया। हालत गंभीर हो गई। चिकित्सकों ने दिल्ली रेफर कर दिया। पूरे 83 दिनों तक दिल्ली के अस्पताल के बेड पर जिंदगी और मौत के बीच सलमा झूलती रही। आखिरकार जिंदगी की जंग हार गई। सलमा की सांसों की डोर सदा के लिए टूट गई। भाई मंजर अमन सहित मां-बाप पूरे परिवार पर आफत टूट पड़ी। तेजाब हमले की शिकार बहन की मौत पर आंसुओं में डूबे भाई ने समाज और सरकार को संबोधित लेटर लिखा है, जिसे पढ़ने पर हर कोई सोचने को मजबूर होगा किस समाज में हम जी रहे। यह पत्र पढ़कर आप
तेजाब फेंककर लड़कियों के चेहरे झुलसाकर उनके अरमानों को झुलसाने वाले दरिंदों के प्रति गुस्से से भर उठेंगे। सलमा के भाई ने सरकार से तेजाब पीड़िताओं को न्याय दिलाने के लिए 10 सूत्रीय कदम उठाने की मागं की है। ताकि फिर कोई लड़की उसकी बहन की तरह अन्यया का शिकार न हो।
एसिड अटैक पीड़िता के भाई का लिखा खत
...काश ये समाज उस दर्द को समझ पाता जो एक लड़की अपने ऊपर तेजाबी हमले में झेलती है। मेरी मासूम सी बहन असमय ही रुखसत हो गई। एक दरिंदे की करतूत से। काश लोग समझ पाते कितेजाबी हमला सिर्फ किसी के चेहरे पर ही नहीं होता बल्कि उसके ख्वाबों, उसकी उमंगों, उसकी सोच और उससे भी बढ़कर उसके अस्तित्व पर भई होता है। एक खौफनाक आवाज के साथ ख्वाब चकनाचूर हो जाते हैं। यह हमला उस समाज पर भी होता है, जिसका वो हिस्सा होती है। इस तकलीफ को वही समझ सकता है, जिस पर कभी ये मुसीबत आई हो। कोई उन तकलीफों और दर्द को नहीं समझ सकता। यह समाज तो उसके बदनुमा चेहरे को देख कर गैर जिम्मेदराना टिप्पणियां कर सकता है, लेकिन उस बदनुमा चेहरे के पीछे दम तोड़ते हुए हुए उसके ख्वाब को नहीं देखना चाहता। आमतौर पर तेजाब से पीड़ित लड़की अपनी सामाजिक जिंदगी से मायूस हो जाती है। क्योंकि यह समाज उसको अपनाने को तैयार नहीं होता। अक्सर देखा गया है कि बस, ट्रेन या मेट्रो आदि में उनके साथ खराब बर्ताव किया जाता है। यह महज इसलिए होता है कि इस समाज में जी रहे लोग तेजाब हमले जैसे खौफनाक हादसे से कभी गुजरे नहीं होते। अगर किसी ने करीब से ऐसा हादसा देखा हो तो उनसे दूरी और नफरत के बजाए हमदर्दी बयां होगी।
क्या लड़कियों की परवरिश करना इतना बड़ा जुर्म है कि उनके मां-बाप और परिवार से जीने की आस ही छीन ली जाए। क्या हम इतने मजबूर हैं कि दरिंदों के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते। क्या हम पीड़िताओं को सहानुभूति की छांव नहीं दे सकते। हमें एसिड अटैक पीड़िताओं के बदनुमा चेहरे से नफरत करने की बजाए उन दरिंदों का बहिष्कार करना चाहिए जिन्होंने किसी मासूम की जिंदगी तबाह की हो। बांग्लादेश जैसे मुल्क में भी खुलेआम तेजाब बेचने पर कड़ी पाबंदी है। मगर आसमान की बुलंदियों पर होने का दावा करने वाला यह मुल्क सुस्ती का मुजाहरा पेश कर रहा है। -मंजर -एक बदनसीब भाई
हम सरकार से दस सूत्रीय मांग करते हैं
1-तेजाबी हमले के खिलाफ ठोस और कड़ा कानून बने। स्त्रियों के खिलाफ जिस्मानी, जहनी और जिंदी अपराधों का क्लासिफिकेशन हो
2-अक्सर ऐसी वारदात में पीड़िताओं की मौत नहीं होती बल्कि उनका चेहरा तबाह जो जाता है। जिससे वे हर रोज मरने को मजबूर होती हैं। ऐसे में आरोपियों पर आजीवन कारावास की सजा हो।
3-तेजाब पीड़िताओं को न्याय दिलाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन हो। ताकि पीड़िताओं को कोर्ट का चक्कर न काटना पड़ा
4-तेजाब पीड़ित युवतियों को न्याय दिलाने के लिए सरकार को अलग से एजेंसी स्थापित करनी चाहिए
5-पीड़िताओं को पूर्ण कानूनी इमदाद मुहैया कराई जाए। ताकि इंसाफ के लिए उन्हें दर-दर न भटकना पड़े।
6-केंद्र व राज्य सरकारें पीड़िताओं को मुआवजा और सरकारी नौकरी देने की पहल करें
7-पीड़िताओं के चेहरे की सर्जरी काफी महंगी होती है, इस नाते सरकार इलाज का खर्च उठाए।
8-तेजाब की खरीद-फरोख्त के लिए लाइसेंस अनिवार्य हो। आईडी कार्ड के जरिए ही बेचा जाए।
9-पीड़िताओं का मानसिक काउंसिंलिंग के लिए मनोवै ज्ञान िक परामर्श मुफ्त में दी जाए
10-परिवार के पुनर्वास की भी व्यवस्था की जाए। ताकि उन्हें आर्थिक, सामाजिक संबल मिल सके।