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जाति

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मैंने एक छोटी सी कहानी पढ़ी है । एक किसान था । उसके चार बेटे थे । समय आने पर उसने अपनी जमीन को चार बेटों में बाँट दिया । उसने अपने चार बेटों को एक बराबर जमीं प्रदान की थी । सोचा था चारो बेटे शांति से रहेंगे। एक आदमी बहुधा जैसा सोचता है , वैसा होता नहीं है। चारो बेटे एक स

जाती या मानसिकता © Vimal Kishore; September 2020 जाति या मानसिकता ? सबसे पहले तो मैं ये साफ कर देना चाहता हूँ कि इस लेखको पढ़ने से पहले जातिगत मानसिकता, वर्गीय विचारधारा या कोई भी जातिसूचक शब्द, अपने मस्तिष्क से अलग निकाल कर रखदें, क्योंकि मेरा इस लेख को लिखने काअभिप्रयाय ही इस भावना से प्रेरित है क

ऐसा प्रतीत होता है कि सवर्णो को सरकार ग्रांटेड के तौर पर ले रही है. जब माननीय उच्चतम न्यायलय ने अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम के दुर्प्रयोग पर चिंता जाहिर करते हुए भारत के नागरिको के हित में अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए उचित और समयानुकूल संशोधन किया था तब भ

फक्र उनको है बता जात अपनी, शर्मिंदा हम है देख औकात उनकी.किया कीजियेगा अपनी इस जात का, मिलेगा तुम्हे भी कफ़न जो मिलेगा बे-जात को. (आलिम)

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जाति और राजनीति के हिसाब-किताब को देखें तो साफ हो जाता है कि पिछला दलित-पिछड़ों का उभार कोई लालू- नीतीश - मुलायम जैसे नेताओं का करिश्मा नहीं था, बल्कि वह जाति और राजनीति के रिश्तों की सहज उपज था। इन नेताओं ने उसी उभार की फसल काटी । जैसे जातिमें पैदा होने के लिए कुछ करना नहीं होता है। वैसे ही जाति की

जाति कौन जागता है ?कौन सोता है ?यहाँ कौन सा किस तरह का बदलाव हुआ है ?एक बच्चा आज भी माँ की कोख से जाति ले के जन्म लेता है. बोध होता हो या ना होता हो,दुनिया बोध करा देती है,जाति ऐसी चीज है जो उम्र के साथ अपना कद दोगुना बढ़ा लेती है. एक पेड़ पर चढ़कर आज भी मनुष्यअपनी वाली डाली ही काटता रहता है,यह बिंब प्

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