
देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ोत्तरी का सिलसिला इस चुनाव में भी जारी रहा। उत्तराखण्ड में मतदान को लेकर रिकार्ड 68 फ़ीसदी मतदाताओं ने हिस्सा लिया। 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में राज्य में केवल 54.21 प्रतिशत ही मतदान हुआ था। मतदान में आए इस उछाल को लेकर राजनैतिक विश्लेषकों का अपना अपना अनुमान है, तो सियासी पार्टियां भी इसे अपने हिसाब से परिभाषित करने में लगी हुई हैं।
भाजपा नेताओं के चेहरे मतदाताओं के अच्छी खासी तादाद में वोटिंग के लिए निकलने को लेकर बेहद उत्साहित और ख़ुश हैं। पिछले उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में महज एक सीट और 0.66 प्रतिशत मतों के अंतर के कारण सत्ता से चूकी भाजपा को लग रहा है कि अगर रेकार्ड संख्या में मतदाता पोलिंग बूथ तक पहुंचे हैं तो यह रुझान बदलाव का संकेत है।
दरअसल, भाजपा अब यह मानकर बैठी है कि मोदी मैजिक के साथ ही पार्टी को एंटी इनकंबेंसी फैक्टर का भी लाभ मिला है। यही वजह रही कि बुधवार सुबह खिली हुई धूप के साथ पोलिंग बूथ पर मतदाताओं की भीड़ देखकर भाजपाईयों के चेहरे खिले हुये थे। भाजपा को इस चुनाव में इन दो ही कसौटी पर मतदाताओं के समर्थन की उम्मीद थी और भाजपा के रणनीतिकारों को लगता है कि इन्हीं दो पैमानों पर राज्य में कांग्रेस के ख़िलाफ़ मतदान हुआ है। अब भाजपा को पूरी उम्मीद है कि 11 मार्च को आने वाले नतीजे उनके ही हक़ में होंगे।
कांग्रेस भी रिकॉर्ड मदतान को लेकर अपनी जीत का दम भर रही है। 2012 में हुये विधानसभा चुनाव में महज़ एक सीट के अंतर से भाजपा को सत्ता से बेदखल करने में कामयाब रही। फ़िलहाल सत्ता पर क़ाबिज़ कांग्रेस अपनी जीत के दावे तो पहले भी करती रही मगर इसे केवल रणनीति का हिस्सा ही माना गया। कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार इसे केंद्र के ख़िलाफ़ एंटी इनकंबेसी के रूप में देख रहे हैं। कांग्रेस को यह लग रहा है कि नोटबंदी और महंगाई जैसे मुद्दों पर अपना गुस्सा जताने मतदाता इतनी बड़ी संख्या में वोट डालने आए, हालांकि दबी ज़ुबान पर दून से लेकर दिल्ली तक यह चर्चा है कि कांग्रेस की हालत उत्तराखण्ड में उतनी अच्छी नहीं रही।