मुस्लिम बहुसंख्यक समुदाय वाले क्षेत्रों में महिलाओं में अभी भी कई पाबंदियां है। वह हिजाब या नकाब पहनकर बाहर निकलती है।यदि कोई इसका पालन नही करता है तो मुस्लिम समाज उसे दण्ड या समाज से बहिष्कृत करता है। ये सब साधारण काम काज में होता है तो शिक्षा में क्या होता होगा इनकी शिक्षा प्रणाली कैसी होगी। औरतों को शिक्षित होने ही नही दिया जाता है।
किसी भी पाठशाला में सभी लोग सभी धर्म के एक साथ शिक्षा ग्रहण करते हैं ।एक साथ बैठते हैं किसी के लिए विशेष व्यवस्था नही है अब तो दिव्यांग भी सभी बच्चो के साथ शिक्षा ग्रहण करते है समावेशी शिक्षा। यदि मुस्लिम में हिजाब पहनने का रिवाज है तो स्कूल में उसे क्यो लागू करे।स्कूल में हिजाब पहनने की क्या जरूरत है। स्कूल का अपना पहनावा व पहचान है।कल यही लोग जब उच्च शिक्षा ग्रहण करने अन्य जगह जायेंगे तो कैसे एर्जेस्ट करेंगे। हिजाब पहनने वाले अचानक हिजाब बिना अड़चन महसूस करेंगे। इसलिए शिक्षा जैसे स्थानो में सभी को एक समान पहनावे
यूनिफोर्म को अपनाना चाहिए। उच्च माध्यमिक शिक्षा स्तर एक समान यूनिफार्म होना चाहिए जैसा कि पुरे भारत में है। जरा सोचे कालेज में कोई हिजाब या नकाब पहनकर,कोई धोती कुर्ता पहनकर, कोई बंगाली पहनकर, कोई कोट पहनकर या कोई अपने रिवाज के अनुसार पहनकर आए तो क्या शिक्षा दिया जा सकता है क्या ऐसे में शिक्षको को कोई अड़चन न होगी। गम्भीर अध्ययन-मनन हो सकेगा। नाममात्र कालेज आना होगा पढ़ाई से क्या लेना-देना।लोग एक दूसरे के पहनावे को देख कर उत्साहित हो जायेंगे।
यदि मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में सभी लोग हिजाब लगायेंगे तो ठीक है पर उसमें दुसरे धर्म के लोग पढ़ नही पायेंगे।अपने लिए लागू कर सकते है लेकिन कब तक कोई ना कोई तो उच्च शिक्षा ग्रहण करने दुसरी जगह जायेगा। ऐसे में एक स्वस्थ सलाह है कि बच्चो को धर्म से अलग रखे और युनिक शिक्षा दे। वो शिक्षा जो रुढिवादी सोच से उसे ऊपर उठावे। सारे प्रताड़ना व्यवस्था वह तोड़ सके जो उसके जीवन या आसपास घटित हो।
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