एक के सर पर आँचल और एक के सर पर दुपट्टा। एक साड़ी में और दूसरी सलवार सूट में। उम्र का फ़ासला तो उतना नहीं रहा होगा मगर मज़हब के फ़ासले के मिटने की खिलखिलाहट दबी ज़ुबान में मुझ तक पहुँच रही थी। मैं अंतर्जातीय और अंतरधार्मिक ब्याह रचाने वाले जोड़ों के अनुभव से बातें कर रहा था। मुझसे रहा नहीं गया, दोनों की तरफ मुड़ गया। दोनों समधनें साथ ही बैठी थीं। चाहतीं तो अपने अपने बच्चों के बगल में बैठ सकती थीं। सफेद सूट में मुस्लिम समधन और लाल साड़ी में हिन्दू समधन। ऐसा दृश्य कहाँ देखने को मिलता है। आम परिवारों की माँ और अम्मी जान ते लिए आसान नहीं रहा होगा अपने बच्चों के अंतरधार्मिक विवाह को स्वीकार करना और उसे लेकर ख़ुद को समझाना।
अख़्तरी बेगम बिहार के समस्तीपुर की रहने वाली हैं और पार्वती राय यूपी के ग़ाज़ीपुर की। मैंने तो मज़ाक में पूछ लिया कि आप दोनों समधन में तो ख़ूब जमती होगी, एक दूसरे को तोहफ़े में साड़ी वगैरह तो देती ही होंगी आपलोग। हिन्दू समधन का बेटे की माँ होने का ठसक बोल गया। आँचल से मुँह ढांपते ढांपते हंसने लगीं और कह दिया कि मैं क्यों दूँगी साड़ी। मैं तो लड़का वाली हूँ। मेरी भी हँसी छूट गई। सोचा इस उम्र में इन्होंने अपनी सोच में इतना बदलाव किया है तो कुछ पुरानी ठसक रह भी जाए तो उसे अगले ज़न्म के लिए छोड़ देना चाहिए। इस जन्म में मनीष की माँ शबाना को बहू की जगह बेटी कहती हैं, यही क्या कम है।
दोनों समधनों के लिए करीब आना आसान नहीं रहा होगा लेकिन एक बार आ गए तो दोनों ने धर्म की सीमा भी देखी और सीमाओं से पार बच्चों की खुशी भी। मनीष की माँ कहने लगी कि एक ही बेटा था मेरा। कभी किसी मुसलमान के घर नहीं गई थी न ही कोई मेरे घर आया था। शुरू में तो बहुत डर लगा कि पड़ोसी क्या करेंगे। रिश्तेदार क्या बोलेंगे लेकिन जब स्वीकार कर लिया तो दिक़्क़तें कम हो गईं। शबाना की माँ माँ ने कहा कि ये घर से ही भाग गई। मगर अब सब ठीक है। हमें कोई समस्या नहीं है। पार्वती राय ने पोते की तरफ दिखाते हुए कहा कि ये सलाम भी करता है और नमस्ते भी।
मनीष और शबाना ने धर्म नहीं बदला है। रेणु और आसिफ़ इक़बाल ने भी धर्म नहीं बदला है। शादी के झमेले तो झेले ही, किसी और जोड़ी को कम झेलनी पड़े इसलिए एक संस्था बनाई धनक। आज इससे छह सौ ऐसे जोड़े जुड़े हैं जिन्होंने धर्म और जाति की दीवारें तोड़ कर ब्याह रचाए हैं। इस संस्था से जुड़ने वालों के लिए एक शर्त हैं। अंतरधार्मिक शादी करने पर कोई धर्म और नाम परिवर्तन नहीं करेगा।
रानू और आसिफ़ ने बताया कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी का प्रावधान तो है मगर उसमें इतनी जटिलताएँ हैं कि वहाँ भी दलाल पहुँच गए हैं जो धर्म परिवर्तन के लिए उकसाते हैं। कोर्ट के बाहर अपराधी की तरह शादी करने वालों की तस्वीर लगाई जाती है। पूरा मामला भयावह हो जाता है। इन सबसे बचने के लिए कोर्ट में ही राय देने लगते हैं कि धर्म परिवर्तन कर लीजिये, आसानी से शादी हो जाएगी। सरकार भी स्पेशल मैरेज एक्ट का प्रचार नहीं करती है। उसमें सुधार नहीं लाती है जिससे ऐसी शादियाँ आसान हो सकें।
आसिफ़ इस बात को लेकर सख़्त हैं कि धर्म क्यों बदलना है। रेणु से शादी करने में उन्हें भी विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन दोनों ने अपनी दुनिया बसा ही ली। न तो धर्म बदला और न ही नाम। रिश्ते में बराबरी के स्पेस को सबसे ज़्यादा अहमियत दी। आसिफ़ ने कहा कि किसी महफ़िल में वे मिस्टर कुलश्रेष्ठ हो जाते हैं तो रेणु मिसेज़ ख़ान हो जाती हैं।
चौदह फ़रवरी के दिन आते ही एक तबक़ा आतंकित हो उठता है। रेणु के पिता ने कहा कि उन्होंने ख़ूब विरोध किया। मगर जिन बातों को लेकर वो पहले डरे थे, समय के साथ सारे डर बेवजह साबित हुए। कुलश्रेष्ठ जी लव जेहाद और उसकी राजनीति की बात पर मुस्कुराते रहे। हँसते हुए यही कहा कि अकसर मीडिया ही डरा देता है।
मीडिया को अंतर्जातीय और अंतर धार्मिक विवाह क पक्ष में खड़ा होना चाहिए लेकिन वो समाज में यथास्थिति को बनाए रखने के लिए ऐसे मसलों को सांप्रदायिक रंग दे देता है। वैसे एफ एम रेडियो की दुनिया में वेलेंटाइन डे पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। कमी यह रही कि वहाँ भी ऐसी शादियों की व्यावहारिक चुनौतियों और ख़ूबसूरती पर कोई चर्चा सुनाई नहीं दी। फूल वाले और बलून वालों ने भी वैलेंटाइन डे जमकर मनाया होगा !
रवि ने पिंकी से शादी करने में कितना जोखिम लिया। पिंकी ने कहा कि वो जाति से पासवान है। उसकी बिरादरी के लोग ख़िलाफ़ हो गए कि अपर कास्ट में कैसे शादी करेगी मगर पिंकी के पिता साथ हो गए। रवि के माता पिता ने तो लड़की के घर जाने से ही मना कर दिया। जब रवि ने बताया कि पिंकी का एक पाँव कमज़ोर है तो यही मुँह से निकला कि क्या लड़की लँगड़ी है।
हमारे समाज में प्रेम आसान नहीं है। इश्क़ में पड़ने का मतलब है जंग में घिर जाना। कितने लम्हे इन सब बातों को सुलझाने में चले जाते होंगे जिन्हें खूबसूरत यादों में बदला जा सकता था। आप भी सोचियेगा जब जाति से इतनी नफ़रत है तो जो लोग इसकी दीवार तोड़ रहे हैं, उनका साथ देना चाहिए या उन्हें अकेला छोड़ देना चाहिए ।