सनसनी वेव डेस्क
नई दिल्लीः न गवाह का नाम-पता और न ही हुलिया का ब्यौरा। न मौका-ए-वारदात की कोई तस्वीर। किसी चश्मदीद की पहचान छिपाती मगर खुलासे को वास्तविकता का पुट देने वाली कोई धुंधली तस्वीर भी नहीं। न ही वेबसाइट पर कोई दावा करती किसी की आवाज। स्थानों की ग्राफिक्स भी वही दी गई जो गूगल पर मिल जाती है। फिर भी दावा है सर्जिकल स्ट्राइक पर सबसे बड़े खुलासे का। यही सच है इंडियन एक्सप्रेस की सर्जिकल स्ट्राइक पर की गई स्टोरी का। हकीकत और फसाने के बीच आखिर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुडे़ संवेदनशील मद्दे पर बगैर सुबूतों के ऐसे बड़े खुलासे का दावा करने की क्या जरूरत रही। कहीं स्टोरी में ट्रक से आतंकियों की लाश ढुलवाई जा रही है तो कहीं पर इमारत ध्वस्त करा दी गई। मगर कोई प्रमाण नहीं। जी हां देश में सर्जिकल स्ट्राइक के गरम चल रहे मुद्दे पर इंडियन एक्सप्रेस के वरिष्ठ खोजी पत्रकार प्रवीण स्वामी ने एक स्टोरी से सुबूत देने की कोशिश की, उनके प्रयास पर कोई टिप्पणी नहीं मगर जब उनके जैसे बड़े पत्रकार की खबर तथ्यों की बिनाह पर हल्की मिले तो सवाल उठना लाजिमी है। तथ्यात्मक लिहाज से उनकी सर्जिकल स्ट्राइक पर खुलासे की स्टोरी धरातल पर नहीं उतरती। महज प्लांटेड स्टोरी लगती है। हां इतना जरूर है कि स्टोरी लिखते समय उन्होंने पीओके पर खूब रिसर्च किया है। ऑनलाइन चप्पा-चप्पा छान मारा है और हर स्थान का जिक्र किया है। जर्रा-जर्रा के बारे में जानकारी दी गई हो,जिससे लगता है कि रिपोर्टर मौके पर घूम-टहलकर आया हो। हालांकि प्रवीण खुद इमानदारी के साथ स्वीकार करते हैं कि इंडियन एक्सप्रेस एलओसी पार नहीं जा सका। केवल स्थानीय निवासियों से हुई कुछ चश्मदीदों की बातचीत के हवाले से यह स्टोरी लिखी है। हो सकता है कि प्रवीण ने स्टोरी में जो बातें बताई हैं उनका सच से वास्ता हो मगर इस पर कोई कैसे यकीन करे जबकि स्टोरी में घटनाक्रम से जुड़ी न एक अदद स्टिल फोटो हो और न ही किसी का बयान। मान लीजिए कोई पहचान छुपाने के लिए अपना बयान नहीं दे रहा है तो कम से कम चेहरा ढंककर उसकी आवाज तो सुनाई ही जा सकती है। इंडियन एक्सप्रेस अपनी वेबसाइट पर चश्मदीदों की आवाज तो सुनवा ही सकता है। यहां इंडिया संवाद सेना की सर्जिकल स्ट्राइक पर सुबूत नहीं मांग रहा। क्योंकि इंडिया संवाद सुबूत के सवालों को ही बेवजह मानता है, हमारी नजर में सेना का बयान ही सबसे भरोसेमंद है। मगर चूंकि यह स्टोरी एक प्रतिष्ठित अखबार की है, इस नाते स्टोरी में जो दावे किए गए हैं, उसके क्या आधार हैं, इस पर सवाल उठना लाजिमी है।
http://indianexpress.com/article/india/india-news-india/pakistan-border-terror-camps-surgical-strikes-kashmir-loc-indian-army-jihadist-3065975/
सिर्फ लांचिंग पैड का प्रोफाइल दिखाया मगर longitude and latitude का पता नहीं
इंडियन एक्सप्रेस ने पीओके में आतंकियों के लांचिंग पैड की प्रोफाइल पेश की है। मसलन कहां-कहां सेना ने किन लॉंजिंग पैड को नष्ट किया। यह प्रोफाइल तो सेना ने पहले से तैयार की है। जब सेना ने पीओके के लॉंचिंग पैड पर हमला किया तो इन कैंप का longitude and latitude यानी उत्तरी-दक्षिणी और पूरब-पश्चिम आदि का हिसाब-किताब नहीं बताया गया है।
फोटो-वरिष्ठ खोजी पत्रकार प्रवीण स्वामीन शवों को ट्रक से ले जाने की न ध्वस्त तस्वीर की इमेज
प्रवीण स्वामी अपनी स्टोरी में एक अज्ञात चश्मदीद के हवाले से लिखते हैं कि उसने सर्जिकल स्ट्राइक वाली रात अल-हावी ब्रिज के पास गोलीबारी की आवाज सुनी, लोग डर के मारे बाहर नहीं निकले, लिहाजा यह नहीं देख सके कि भारतीय जवान एकत्र हुए है। हालांकि उन्हें लश्कर आतंकियों के होने की आहट जरूर मिली। इस बीच पांच से छह शवों को एक ट्रक से अगली सुबह यानी 29 सितंबर को नीलम नदी के पार लश्कर कैंप लाया गया। प्रवीण स्वामी के मुताबिक इस चश्मदीद ने बताया कि उसे यह जानकारियां पीओके के स्थानीय निवासियों ने दी।
इमारत ध्वस्त होने का भी कोई प्रमाण नहीं
पीओके में काजी नाग स्ट्रीम स्थित 25 बस्तियों के काम्प्लेक्स Leepa के पास रहने वाले लोगों से बातचीत के आधार पर एक चश्मदीद ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उसने तीन मंजिला लकड़ी की इमारत सर्जिकल स्ट्राइक में नष्ट होते देखी। यह इमारत खैराती बाग बस्ती के नजदीक रही और इमारत लश्कर आतंकियों के कब्जे में थी। मगर इसकी भी कोई तस्वीर इंडियन एक्सप्रेस पेश करने में विफल रहा।