एक दार्शनिक थे। वह चिंतन में लीन रहते थे। बोलते थे, तो बड़ी गहरी बात कहते थे। इससे लोग उनका बहुत मान-सम्मान किया करते थे। लेकिन कभी-कभी उनकी बातें अजीब-सी होती थीं, और वो स्वयं अपनी ही बातों पर हंसी नहीं रोक पाते थे।
एक दिन लोगों ने देखा कि दार्शनिक महोदय हाथ में जलती लालटेन लिए कहीं जा रहे थे। दोपहर का समय था। धूप निकली हुई थी। चारों और प्रकाश फैल रहा था। ऐसे में जलती लालटेन हाथ में लेकर चलने में क्या तुक थी!
उस दृश्य को देखकर लोग मारे हंसी से लोट-पोट हो गए। पर दार्शनिक तो गंभीर भाव से आगे बढ़ते जा रहे थे। एक आदमी से न रहा गया। उसने दार्शनिक से पूछा आप दिन में लालटेन लेकर कहां जा रहे हैं।
दार्शनिक ने उसकी ओर देखा, और बोले, 'कुछ खो गया है उसे खोज रहा हूं।' जिज्ञासा में उस आदमी ने पूछा, 'क्या खो गया है आपका।' दार्शनिक ने उसी लहजे में कहा कि .....>>>>> http://thoughtinhindi.blogspot.com/2015/06/blog-post_23.html