आग लगाने तो पूरी भीड़ आ जाती है।बुझाने कोई न आए।।
पत्थर मारने तो बहुत आ जाते हैं।
रोकने एक न आए।।
धर्म , मज़हब मानकर मज़हबी धार्मिक तो बन गए सब।
फिर भी एक न हो पाए।।
किसी के लिए कोई दूसरा काफ़िर, विधर्मी तो कोई।
नीच ,अछूत कहाए।।
जिन लीडरों की हमने चुना।
वो हमे ही धर्म मज़हब के नाम पर बस लड़ाए।।
नीतियां बनाकर बस ।
चंद दौलतमंदों की तिज़ोरी भरवाए।।
जिस जनता ने चुना उन्हे ।
उसी जनता को खुले आम लूट खाए ।।
सभ्यता तो बसा ली हमने लेकिन ।
सभ्य नही हो पाए।।
इंसानियत का मुखौटा तो पहन लिया।
मगर इंसान नही बन पाए।।
भूपेश कुमार