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इंसान नही बन पाए।

27 फरवरी 2024

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आग लगाने तो पूरी भीड़ आ जाती है।
बुझाने कोई न आए।।
पत्थर मारने तो बहुत आ जाते हैं।
रोकने एक न आए।।
धर्म , मज़हब मानकर मज़हबी धार्मिक तो बन गए सब।
फिर भी एक न हो पाए।।
किसी के लिए  कोई दूसरा  काफ़िर, विधर्मी तो कोई। 
नीच ,अछूत कहाए।।
जिन लीडरों की हमने चुना।
वो हमे ही धर्म मज़हब के नाम पर बस लड़ाए।।
नीतियां बनाकर बस ।
चंद दौलतमंदों की तिज़ोरी भरवाए।।
जिस जनता ने चुना उन्हे ।
उसी जनता को खुले आम लूट खाए ।।
सभ्यता तो बसा ली हमने लेकिन ।
सभ्य नही हो पाए।।
इंसानियत का मुखौटा तो पहन लिया।
मगर इंसान नही बन पाए।।

                               भूपेश कुमार 

भूपेश कुमार की अन्य किताबें

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रचनाएँ
अंत्यज की लेखनी।
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अंत्यज की लेखनी इस पुस्तक में आपको दलित विमर्श कविताएं एवम लघु कथाएं पढ़ने को मिलेगा। इस पुस्तक में दलितों को संगठित होने ,संघर्ष करने तथा शिक्षित होने तथा कुछ कर गुजरने के संदेश भी मिलेंगे।और उनके साथ हुए बुरे अनुभव एवम उनके साथ होते भेदभाव को भी समझने का मौका प्राप्त होगा। और कुछ नास्तिकवाद भी देखने मिलेगा ।मैं खुद भी दलित समाज से आता हूं।यह मेरी एक छोटी कोशिश है।की मैं उनके दर्द और उनके सफर को अपनी इस पुस्तक में संग्रह करना चाहता हूं।और अपनी कविताओं वा लघु कथाओं से उन्हें कुछ संदेश भी देना चाहता हूं।
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मानवता से बड़ा धर्म।

17 फरवरी 2024
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अब मानवता से बड़ा धर्म है।  दल से बड़ा नेता।। विचारो से बड़ी मूर्तियां हैं।  तर्क से बड़ी अंध श्रद्धा ।। रक्त से महंगा नीर है।  ज्ञान से भारी बस्ता ।। जो सच कहे वो अकेला है।  जो झूठ परोसे उसके

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घुटती जीती औरत।

26 फरवरी 2024
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उस बेइंतहां ताकतवर खुदा के घर।क्यों दलालों की जगहें खास होती हैं।।हर मज़हब हर धर्म में क्यों औरत ही घुटती जीती है।उसकी बस यही खता यही गलती है ।।क्योंकि वो औरत पैदा होती है। &

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इंसान नही बन पाए।

27 फरवरी 2024
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आग लगाने तो पूरी भीड़ आ जाती है।बुझाने कोई न आए।।पत्थर मारने तो बहुत आ जाते हैं।रोकने एक न आए।।धर्म , मज़हब मानकर मज़हबी धार्मिक तो बन गए सब।फिर भी एक न हो पाए।।किसी के लिए कोई दूसरा काफ़ि

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हां मैं नहीं मानता।

29 फरवरी 2024
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हां मैं नहीं मानता ,तुम्हारे पाखंड भरे धर्म को। भेदभाव से भरे,तुम्हारे शास्त्र और ग्रंथों को।। हां मैं नहीं मानता,तुम्हारे बनावटी ईश्वर ,खुदा ,भगवान को। जो बिना चढ़ावे की रिश्वत लिए किसी का भला करे।।

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तू पहला कदम तो बढ़ा।

3 मार्च 2024
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तू पहला कदम तो बढ़ा,तेरे लिए रास्ते ख़ुद ब ख़ुद बन जायेंगे।तेरे पैरों पर ज़ख्म देने वाले कंकर पत्थर मंजीरे बन खनक जायेंगे।तू पहला कदम तो बढ़ा, फिज़ाओं में तेरे ही गीत गुनगुनाएंगें।यह ज़मीं आसमां तेरे

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वो है गरीब , मजबूर ,मजदूर इस जहां में।

21 फरवरी 2024
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पिस जाती है उस गरीब की जिंदगी ।एक वक्त की रोटी कमाने में।।कट जाती है उसकी पूरी जिंदगी।सिर पर प्लास्टिक की छत लगाने में।।दिन रात एक कर देता है वो ।शर्दी की उन ठिठुरती रातों से बचने के लिए। एक कम्ब

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तुझे गुलाम किसने बनाया।

11 मार्च 2024
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तू था कभी इस सरजमीं का मालिक,मगर फिर तुझे गुलाम किसने बनाया।तेरी ज़मीन पर नही था भेदभाव कभी,फिर किसने यहां ऊंच नीच का जहर फैलाया।।तेरे वंशजों का राज था इस जमीन पर कभी,फिर किसने तुझे हाशिए पर पहुंचाया।

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यह पाखंड की दीवारें तोड़ दे तू ।

14 मार्च 2024
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यह पाखंड की दीवारें तोड़ दे तू ,जो तुझे कैद रखती हों।ऐसे ईश्वर को छोड़ दे तू ,जो तुझे गुलाम बने रहने को कहते हों।।ऐसे धर्म को भी त्याग दे तू , जो तुझे नीच ,अछूत कहते हों।उन अंधविश्वासों को छ

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एक संदेश।

9 अप्रैल 2024
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सिर न झुकाना कभी मिथ्या और पाखंड के आगे। नतमस्तक रहने सदा सत्य और ज्ञान के आगे।। जीवन में कुछ करना है तो ,रहो अपने काम में सबसे आगे। काम ऐसा करो की समाज की गरीबी ,दरिद्रता भागे।। उच्च शिक्षा ग्रहण करो

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