गढ़वा/ रांची : एसडीओ दफ्तर के सामने की सोमवार दोपहर दो बजे की तस्वीर हैं. ठीक चौखट के सामने अस्सी साल की श्यामदेई कुंवर औंधी पड़ी हुई हैं. लाठी पर हाथ की पकड़ देखिए. लगता है, उठ जाएगी. मगर ऐसा कभी नहीं होगा. वह सुबह की आई थी. यहीं ठंड में अकड़ कर दम तोड़ दिया. मजदूरपेशा भतीजे सुरेश बिंद ने कहा, चाचा रहे नहीं. उनका बेटा बंगाल में मजदूरी करता है. चाची किसी तरह गुजारा कर रही थी. पंद्रह दिन से यही कहकर घर से निकलती थी कि सरकारी दफ्तर कंबल लेने जा रही हूं. रोजाना खाली हाथ लौटती थी.
प्रशासन सो गया तो क्या जागेगी सरकार?
गढ़वा के एसडीओ राकेश कुमार कहते हैं, वृद्धा की मौत उल्टी करने के बाद हुई. उन्हें नहीं पता कि वृद्धा क्यों रोज उनके दफ्तर आ रही थी. वह कहते हैं, मैंने तो पहली बार देखा. राज्य सरकार ने एक महीने पहले लाखों कंबल पूरे राज्य में बांटने भेजे थे. इनमें तीस हजार गढ़वा जिले को मिले थे. ये बंटे भी या नहीं? बंटे तो किसे बंटे? एसडीओ इस जमीनी हकीकत पर नहीं जाते. सामाजिक सुरक्षा सहायक निदेशक पीयूष कुमार सिर्फ इतना कहते हैं, बीडीओ और वार्ड मेंबर के जरिए ये कंबल बांटे जाते हैं. जब एसडीओ दफ्तर आने वाली बेसहारा को पंद्रह दिन में भी कंबल नहीं मिला तो गरीब बस्तियों में किसे मिल रहे होंगे, यह भी जांच का विषय है. दिल्ली और रांची से कितनी ही इमदाद भेजी जाए, नौकरशाही के सोते ये गरीबों तक नहीं पहुंच सकती.