डायरी दिनांक २२/१०/२०२२
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आज धनतेरस का पर्व मनाया जा रहा है। भगवान कुबेर धन के रक्षक देवता कहे गये हैं। आज के दिन भगवान कुबेर की पूजा की जाती है। धनतेरस के दिन खरीदारी करना तरक्की के लिये आवश्यक कही जाती है। ज्यादातर लोग आज के दिन बर्तन, कपड़े अथवा सोना चांदी खरीदते हैं। इस विषय में हमारे परिवार का रुख बाबूजी के समय से ही काफी लचीला रहा है। धनतेरस के दिन कुछ न कुछ खरीदना चाहिये, बाबूजी इस सिद्धांत का पालन कम ही करते थे। वास्तव में बाबूजी अनावश्यक खरीदारी के खिलाफ थे।
आज अखबार में भागवताचार्य जी के बयान के विषय में और उस बयान पर कुमार विश्वास जी के विरोध के विषय में अखबार में पढा। आजकल अधिकांश लोग बिना पूरी बात जाने एक निष्कर्ष बना लेते हैं। जबकि मुझे यह कम ही पसंद है। बिना जाने कि उसने वास्तव में क्या कहा था, किसी को धूर्त और महिला विरोधी मानना मेरे लिये संभव नहीं है। फिर वह वीडियो और उस वीडियो पर कुमार विश्वास जी का ट्वीट आसानी से मिल गया। सचमुच ऐसी कोई बात नहीं कही थी जिसे कि महिलाओं के अपमान से जोड़ा जाये। किसी के विचारों को पसंद करना या न करना सभी के लिये अलग अलग हो सकता है। पर सुंदरता किसी स्त्री का गुण नहीं है, ऐसा कहना किसी भी स्त्री का अपमान नहीं है। तथा यदि सुंदरता के कारण स्त्रियों को हुई असुविधा के विषय में बोलने का अर्थ भी यह कदापि नहीं है कि उस असुविधा का कारण वह स्त्री खुद थी।
आज इसी बात के लिये मेरे मन में सूप और छलना कविता का उदय हुआ। हालांकि एक सच्ची बात है कि मैंने आरंभ में जो कविता लिखी थी, उसका नाम सूप और छलनी था। फिर प्रकाशित करने से पूर्व ही मैं सम्हल गया। अन्यथा मेरी कविता भी स्त्री विरोधी हो जाती। जिसमें छलनी में छिद्र बताये गये हैं।
प्रसिद्धि केवल किसी की गुणवत्ता का प्रमाण नहीं होती है। जिन पंक्तियों पर जमकर तालियां बजती हों, उन पंक्तियों का कोई अर्थ ही नहीं हो, यह भी संभव है। धरती की बैचेनी को बादल समझता है - यह कोई सटीक उपमा ही नहीं है ( धरती और बादल प्रेम के कोई प्रतीक नहीं हैं और न ही उनका प्राकृतिक आचरण उनके प्रेम को परिभाषित करता है।) । तथा जो मेरा हो नहीं सकता, वो तेरा हो नहीं सकता - पंक्ति पूरी तरह अतार्किक, असामाजिक और अव्यावहारिक ही है। एकतरफा प्रेम अक्सर मिटता ही है। यदि किसी के एकतरफा प्रेम की अपूर्ण रहने पर वह कन्या किसी अन्य की जीवन संगिनी नहीं बन सकती है तो फिर तो हर कन्या का जीवन ही इसी तरह का रह जायेगा। क्योंकि ऐसा होना लगभग असंभव ही है कि किसी कन्या को किसी भी युवक ने एकतरफा प्रेम न किया हो।
प्रतिलिपि के मंच पर तथा दूसरे भी अन्य मंचों पर मेरा परिचय बहुत से साहित्यकारों से हुआ है। उनकी रचनाओं में एक गहराई और सटीकता पायी जाती है। तुकबंदी भी साहित्य का हिस्सा होता है। पर मात्र तुकबंदी को तो साहित्य नहीं कहा जा सकता है। साहित्य वही होता है जिसका कि यथार्थ अर्थ हो। तथा यथार्थ साहित्य लिखने बाले बहुत से बेहतरीन साहित्यकार गुमनाम ही हैं।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।