डायरी दिनांक ०८/१०/२०२२
शाम के सात बजकर पैंतालीस मिनट हो रहे हैं ।
आज सुबह जगा तो पाया कि काफी तेज बारिश हो रही है। धीरे-धीरे बारिश की तेजी बढती गयी। एक दो बार बारिश जरा कम हुई और फिर से अपनी रफ्तार पकड़ने लगती। हालत यह हुए कि पौने दस बजे तक घर से बाहर निकलने के बिलकुल भी आसार नहीं थे। उसके बाद बारिश कम होने पर आफिस के लिये निकल पाया। दिन में भी दो बार बारिश हुई और उसके बाद अभी लगभग आधा घंटे से हो रही है। इस बार पता नहीं कि ईश्वर की कैसी इच्छा है।
मानव मन का स्वभाव है कि वह दूसरों की कमियां पकड़ता है। पर जब वह खुद भी वही गलतियां करता है तब उसे अपनी गलतियाँ ध्यान नहीं आतीं। एक ही घटना पात्र बदलने पर अलग अलग तरीके की लगती है। जो दूसरे के लिये गलत लगता है, खुद के लिये उसमें किसी भी तरह की कमी दिखाई नहीं देती।
एक सीमा से अधिक होने पर उन्नति का ग्राफ या तो स्थिर हो जाता है अथवा वह नीचे की तरफ गिरने लगता है। सर्वश्रेष्ठ से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं हो सकता है। सर्वश्रेष्ठ वह अवस्था है जहाँ उन्नति एकदम रुक जाती है।
माना जाता है कि मन के विचारों का दूसरों पर भी कुछ प्रभाव अवश्य पड़ता है। भगवान बुद्ध के जरा से साथ से अंगुलिमान जैसा निर्दय लुटेरा, करुणामयी संत बन गया था। संगति के प्रभाव को व्यक्त करती और भी कितनी कथाएं प्रचलित हैं।
मेरा विश्वास है कि संगति निश्चित ही असर दिखाती है। पर जरा सी देर की संगति से पूर्ण बदलाव मात्र पूर्व जन्मों के भाग्योदय से ही संभव है।
जिस तरह सद्संगति अपना प्रभाव छोड़ती है, उसी तरह कुसंगति अपना गलत प्रभाव अवश्य छोड़कर जाती है। हालांकि बहुत उच्च कोटि के संतों पर कुसंगति अपना प्रभाव नहीं छोड़ती है। वे चंदन के वृक्षों की भांति सर्पों के संग से प्रभावहीन रहते हैं। पर प्रमुख बात है कि अभी उस अवस्था तक पहुंचने में हमें बहुत समय लग सकता है। यह बहुत बड़ा समय शायद इस जन्म की परिसीमा से भी बड़ा हो सकता है। हम तो एक एक सीढी धीरे धीरे चढने बाले साधक हैं। हमारे लिये कुसंगति हमारी साधना में सबसे बड़ी बाधा हो सकती है।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।