डायरी दिनांक ०७/१०/२०२२
शाम के छह बजकर पांच मिनट हो रहे हैं ।
बेमौसम बरसात के कारण जनजीवन अस्त व्यस्त हो रहा है। मेरी याददाश्त में इतनी अधिक मात्रा में सितंबर और अक्टूबर के महीने में कभी भी बारिश नहीं हुई। सावन और भादौं के महीने में थोड़ी बरसात के बाद सितंबर के महीने में अति की बरसात हुई। मौसम की कुछ ठंडा हो गया था। पर जैसे ही बारिश बंद हुई, कुछ ही दिनों में पहले जैसी गर्मी हो गयी। अब फिर से दो दिनों से बारिश हो रही है।
अक्टूबर का महीना त्यौहारों का महीना है। नवरात्रि और दशहरे के उपरांत अभी दीपावली का त्यौहार भी आने बाला है। वैसे दीपावली से पहले भी महिलाओं का करवा चतुर्थी का पर्व आयेगा। तथा करवा चतुर्थी के बाद में अहोई अष्टमी का भी त्यौहार है। इस सप्ताह तो बैंक बालों की मौज ही मौज है। इस पूरे सप्ताह में ज्यादातर बैंक मात्र तीन दिन सोमवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार को खुली हैं। कल द्वितीय शनिवार का और परसों रविवार का अवकाश है। इन तीन दिनों में भी बैंकों का बहुत सारा स्टाफ छुट्टी पर रहा। ज्यादातर एटीएम भी नगदी के अभाव में बंद रहे।
प्रत्येक के जीवन में कुछ न कुछ कठिनाइयां रहती हैं। वास्तव में यदि जीवन में सब कुछ अच्छा अच्छा ही रह जाये, उस समय भी जीवन का आनंद नहीं रहेगा। यदि कठिनाइयां पूरी तरह समाप्त हो जायें, तब शायद कोई भी विकास नहीं होगा। संसार की बड़ी से बड़ी खोजें कठिनाइयों में ही हुईं हैं। यदि जीवन को संघर्षमय कहा गया है तो दूसरी तरफ संघर्षों को ही जीवन कहा जाता है।
कठिनाइयों से मनुष्य निखरता भी है तो कई बार अति की कठिनाइयों से मनुष्य अवसाद ग्रस्त भी हो जाता है। वैसे कहा यह भी जाता है कि जिस मनुष्य को जीवन में कभी कठिनाइयों से पाला नहीं पड़ा , वे थोड़ी सी भी कठिनाइयों में अपना धैर्य खो देते हैं। फिर वे अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं।
बहुत बार कोई मनुष्य स्वयंमेव कठिनाइयों से पार पाने की चेष्टा करने लगता है। वह उन कठिनाइयों से लड़ना सीख भी जाता है। उसके उपरांत भी कई बार कुसंगति का ऐसा असर होता है कि वह मनुष्य नशे का सहारा लेने लगता है। उसे बताया जाता है कि नशा ऐसी आलौकिक औषधि है जो कि मनुष्य के मानसिक अवसाद को नष्ट कर देती है। विभिन्न उदाहरणों और तर्कों के द्वारा उस अवसादग्रस्त मनुष्य को यही बताया जाता है कि नशा ही दुखों से छूटने का उपाय है। पुराणों में वर्णित सोमरस को नशा का पर्याय बताया जाता है। अवसादग्रस्त मनुष्य खुद निर्णय ले पाने में असमर्थ ही होता है। ज्यादातर वह नशे के कुचक्र में घिर जाता है।
बचपन से एक कथा सुनता आया हूं। कथा में कितनी सत्यता है और कितना झूठ, कह नहीं सकते। एक अति धनाढ्य व्यक्ति में व्यापार में होते घाटे के कारण अवसाद की अवस्था में आत्महत्या कर ली। आत्महत्या के उपरांत भी वह अवसादग्रस्त मनुष्य करोड़ों की संपत्ति अपने बच्चों के लिये छोड़ गया।
एक होनहार छात्र जिसे परीक्षा में बांछित अंक प्राप्त नहीं हुए, अवसाद में अपना जीवन गंवा बैठा जबकि उसके अंक उसकी कक्षा में ज्यादातर छात्रों से अधिक थे।
जैसे रात्रि के बाद दिन अवश्य आता है। उसी तरह कठिनाइयों का भी अंत अवश्य होता है। केवल यही चिंतन किसी भी मनुष्य को अवसाद से बचाता रहता है।
जनपद मैनपुरी में एक व्यक्ति पर चौबीस वर्षों तक पैंतालीस रुपयों की चोरी का मुकदमा चला। अंत में उस व्यक्ति ने अदालत में लिखित शपथपत्र देकर अपना अपराध स्वीकार कर लिया। न्यायधीश महोदय ने उसे नियमानुसार कारावास की सजा सुनाई तथा जमानत न होने की स्थिति में उसके द्वारा कारावास में गुजारी उसकी अवधि को सजा में से कम किया तो पाया कि चौबीस वर्ष तक चले मुकदमे में उस व्यक्ति को मात्र चार दिन की सजा दी जा सकती है। चार दिन की सजा काटकर वह व्यक्ति अब जेल से बाहर आ चुका है।
यह भी अच्छी बात है। कई छोटे अपराधों में तो दोषियों को जो सजा सुनाई जाती है, उससे अधिक तो वह पहले ही कारावास में बिता चुके होते हैं।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।