डायरी दिनांक ११/१०/२०२२
रात के आठ बज रहे हैं।
फसलों को लगभग बर्बाद कर आज बारिश कुछ थमी रही। जिस किसी भी किसान से मुलाकात हुई, वह लगभग रोता हुआ सा मिला। किसान की मेहनत तो तभी सार्थक होती है जबकि उसे उसकी फसल की कीमत मिल जाये। अन्यथा किसान की मेहनत अनिश्चित ही अधिक होती है।
आज भारत भारती का कुछ भाग और पढा। अच्छी बात है कि कवि ने काव्य के माध्यम से प्राचीन भारत की जिन बातों का उल्लेख किया है, नीचे उन बातों के समर्थन में बहुत सारे साक्ष्म भी दिये गये हैं। उदाहरण स्वरूप उल्लेख है कि प्राचीन भारत में लोग अपने कीमती सामान को कहीं भी छोड़ देते थे। उस स्थिति में कोई भी चोर उस सामान की चोरी नहीं करता था। फिर नीचे बहुत सारे विदेशी पर्यटकों की पुस्तकों के अंश दिये गये हैं जिससे सिद्ध होता है कि उस काल में भारत में ऐसा ही होता था। गवाही देते समय मनुष्य अपना तेरी, लाभ हानि की भावनाओं को परे रख सत्य गवाही देता था। इस बात के समर्थन में अनेकों विदेशी पर्यटकों के साथ साथ ब्रिटिश सरकार के न्यायाधीशों के व्यक्तव्य दिये गये हैं जिसमें बताया गया है कि भारतीय उस समय भी सच्ची गवाही देते हैं जबकि उन्हें आर्थिक, सामाजिक नुकसान के साथ साथ प्राणों का संकट भी उपस्थित होने की संभावना रहती थी।
वास्तव में यह गौरव की बात है कि हमारे भारत देश के लोगों के विचार इतने अधिक उच्च थे। साथ ही साथ यह बड़े दुख की बात है कि आज हमारा इतना अधिक चारित्रिक पतन हो चुका है कि हम जरा से स्वार्थ के लिये किसी भी स्तर तक गिर जाते हैं।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।