डायरी दिनांक ३०/१०/२०२२
शाम के छह बज रहे हैं।
कुछ दिनों से डायरी लेखन शिथिल चल रहा है। अभी प्रतिलिपि के मंच पर एक उपन्यास जिंदगी की कहानी का लेखन कर रहा हूँ। प्रतिलिपि के मंच पर जिस तरह से पाठक मिलते हैं और मंच द्वारा भी कई बार सम्मान मिलता रहा है, वैसा सम्मान शव्द इन के मंच पर नहीं मिल रहा। हालत तो ऐसी है कि यहाँ कोई भी मेरी रचनाएं पढता ही नहीं है। फिर बेबजह ज्यादा लिखने का फायदा भी नहीं है।
अभी शव्द इन ने साप्ताहिक समीक्षा की प्रतियोगिता आयोजित की है। प्रतियोगिता आयोजित की है तो प्रतिस्पर्धी भी कुछ तो रहेंगें ही। प्रतिस्पर्धियों को शव्द इन पर प्रकाशित रचनाएं पढकर उनकी समीक्षा लिखनी है। हालांकि अधिकांश प्रतियोगी निःशुल्क पुस्तकों की समीक्षा करना पसंद करेंगें। फिर भी उन्हें कुछ सशुल्क पुस्तकें पढनी ही होंगीं। शायद इस तरह कुछ आनलाइन पुस्तकों की बिक्री हो सकती है।
अभी मेरी दो पुस्तकें इस मंच पर सशुल्क हैं। शायद समीक्षा के लिये ही कोई इन पुस्तकों को खरीदने लगे।
अभी ज्ञात हुआ है कि शव्द इन ने पेपर पब्लिशिंग की कीमत बहुत ज्यादा बढा दी है। पहले लगभग ३००० रुपये में प्रिंट ओन डिमांड पुस्तक प्रकाशित हो जाती थी। जबकि अब यह रेट बहुत बढ चुका है। साथ ही साथ जो पैकेज ८९०० रुपये में मिलता था जिसमें दस लेखक कापी भी मिलती थीं, वह पैकेज भी हटा दिया है। अब तो सुविधाओं पर क्लिक करो और उसी हिसाब से भुगतान करो। दस लेखक कापियों के लिये भी भुगतान करना होगा। कंप्लीट पैकेज लगभग १६००० रुपये का हो चुका है। इतने मंहगे पैकेज पर तो पुस्तक प्रकाशित कराना किसी के लिये भी आसान नहीं होगा।
अभी डायरी की पुस्तक पूर्ण मार्क कर देता हूं। विजेता बनने की संभावना पहले ही लगभग शून्य हैं। जय श्री राम।